Friday, 12 December 2014

ख़ुशी ख़ुशी ख़ुदकुशी कर, खतम खलल खटराग

मर कर पाये मोक्ष तू, बचने पर बेदाग़ |
ख़ुशी ख़ुशी ख़ुदकुशी कर, खतम खलल खटराग | 

खतम खलल खटराग, नहीं अपराध ख़ुदकुशी |
जा झंझट से भाग, असंभव जहाँ वापसी |

जो रविकर कविराय, समस्या से भग जाए |
वह भोगेगा नर्क,  शान्ति ना मरकर पाये || 

7 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (13-12-2014) को "धर्म के रक्षको! मानवता के रक्षक बनो" (चर्चा-1826) पर भी होगी।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. 'नहीं अपराध ख़ुदकुशी' लेकिन बच जाये तो अपराध न ?

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    1. कानून बदल रहा है आदरेया-
      अब अपराध नहीं माना जायेगा आत्म हत्या का प्रयास -
      सादर -

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  3. वाह! बहुत ख़ूब...सुंदर और सटीक

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