हंस हंसिनी से कहे, छोड़ो पापिस्तान।
भरे पड़े उल्लू यहाँ, जल्दी भरो उड़ान।
जल्दी भरो उड़ान, रोकता उल्लू आ के।
मेरी पत्नी छोड़, कहाँ ले चला उड़ा के।
काजी करता न्याय, हारता हंस संगिनी।
हो उल्लू की मौज, पीट ले माथ हंसिनी ।
दोहा
जहाँ पंच मुँह देखकर, करते रविकर न्याय।
रहे वहाँ वीरानगी, सज्जन मुँह की खाय।।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (04-07-2017) को रविकर वो बरसात सी, लगी दिखाने दम्भ; चर्चामंच 2655 पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
:) बढ़िया ।
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