Friday, 25 August 2017
मुक्तक
निज काम से थकते हुए देखे कहाँ कब आदमी।
केवल पराये काम से थकते यहाँ सब आदमी।
पर फिक्र धोखा झूठ ने ऐसा हिलाया अनवरत्
रविकर बिना कुछ काम के थकता दिखे अब आदमी।।
2 comments:
सुशील कुमार जोशी
26 August 2017 at 06:41
सटीक।
Reply
Delete
Replies
Reply
Onkar
26 August 2017 at 21:04
सामयिक और सटीक रचना
Reply
Delete
Replies
Reply
Add comment
Load more...
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
सटीक।
ReplyDeleteसामयिक और सटीक रचना
ReplyDelete