Tuesday 17 October 2017

देह देहरी देहरा, दो दो दिया जलाय -

देह देहरी देहरा, दो दो दिया जलाय ।
कर उजेर मन गर्भ-गृह, दो अघ-तम दहकाय ।
दो अघ-तम दहकाय , घूर नरदहा खेत पर ।
गली द्वार-पिछवाड़, प्रकाशित कर दो रविकर।
जय जय लक्ष्मी मातु, पधारो आज शुभ घरी।
सुख-समृद्धि-सौहार्द, बसे मम देह देहरी ।।

देह, देहरी, देहरा = काया, द्वार, देवालय 
घूर = कूड़ा

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (18-10-2017) को
    "मधुर-मधुर मेरे दीपक जल" चर्चामंच 2761
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    पंच पर्वों की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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