केवल आप के लिए
रविकर *परुषा पथ प्रखर, सत्य-सत्य सब बोल ।
दुष्ट-मनों की ग्रन्थियां, लेती सखी टटोल ।
*काव्य में कठोर शब्दों / कठोर वर्णों / लम्बे समासों का प्रयोग
लेती सखी टटोल, भूलते जो मर्यादा ।
ऐसे मानव ढेर, कटुक-भाषण विष-ज्यादा ।
छलनी करें करेज, मगर जब पड़ती खुद पर ।
मांग दया की भीख, समर्पण करते रविकर ।।
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बहुत खूब कहा रविकर जी..
ReplyDeleteसादर
अनु
बहुत बढ़िया .
ReplyDeleteअति सुंदर.....
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति !!
ReplyDeleteसबके भेजे में घुसें , सीधे सादे बोल
ReplyDeleteमत पहनाएँ भाव को ,रंगबिरंगा खोल
रंगबिरंगा खोल , ढोल नाहक ना पीटें
नागफनी से शब्द,बीच में नहीं घसीटें
नकली चकली छंद,लगें ना बेमतलब के
सीधे सादे बोल , घुसें भेजे में सबके ||
बहुत ही लाजवाब प्रस्तुति है भाई जी ...
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