सोना सोना बबकना, पेपर टिसू मरोड़ । बना नाम आदर्श अब, अहं पुरुष का तोड़ । अहं पुरुष का तोड़, आज की सीधी धारा । भजते भक्त करोड़, भिगोकर कैसा मारा । हैडन कर हर भजन, भरो परसाद भगोना । पेपर टिसू अनेक, मांगते मंहगा सोना ।। |
देवदासी प्रथाJai Sudhirपरिवर्तन है कुदरती, बदला देश समाज । बदल सकी नहिं कु-प्रथा, अब तो जाओ बाज । अब तो जाओ बाज, नहीं शोषण कर सकते । लिए आस्था नाम, पाप सदियों से ढकते । दो इनको अधिकार, जियें ये अपना जीवन । बदलो गन्दी प्रथा, जरुरी है परिवर्तन । |
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteदो दिनों से नेट नहीं चल रहा था। इसलिए कहीं कमेंट करने भी नहीं जा सका। आज नेट की स्पीड ठीक आ गई और रविवार के लिए चर्चा भी शैड्यूल हो गई।
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (2-12-2012) के चर्चा मंच-1060 (प्रथा की व्यथा) पर भी होगी!
सूचनार्थ...!
बहुत ही उम्दा दोहे :)
ReplyDeleteमेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://rohitasghorela.blogspot.com/2012/11/3.html
ReplyDeleteअब तो जाओ बाज, नहीं शोषण कर सकते ।
लिए आस्था नाम, पाप सदियों से ढकते ।
दो इनको अधिकार, जियें ये अपना जीवन ।
बदलो गन्दी प्रथा, जरुरी है परिवर्तन ।
सामाजिक रूप से सार्थक काव्यात्मक लेखन .
बहुत ही उम्दा ... सामाजिक प्रश्नों पर काव्यात्मक चर्चा ...
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