Wednesday, 5 December 2012

बिचौलिया भरमार, ख़त्म कर रहे दलाली-




होंगे ख़त्म बिचौलिया, भरे माल में माल ।
खेतिहर मालामाल हो, ग्राहक भी खुशहाल ।
 
 ग्राहक भी खुशहाल, मिले मामा परदेशी ।
ईस्ट-इंडिया काल, लूट करते क्या वेशी ?

रविकर बड़े दलाल, बटोरेंगे अब ठोंगे ।
दस करोड़ बदहाल, आप भी इनमें होंगे ।।


ऍफ़ डी आई बन रही, इन सब की हत्यार ।
ग्राम नगर संसद सड़क, बिचौलिया भरमार ।
 
बिचौलिया भरमार, ख़त्म कर रहे दलाली ।
दस करोड़ तक लोग, भाड़ झोकेंगे खाली  ।

भारत के नागरिक, नहीं क्या ये हैं भाई । 
जीवन का आधार, मिटाती ऍफ़ डी आई ।

5 comments:

  1. सटीक और सार्थक

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  2. क्या बात है सर जी ,छा रहे हो .

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  3. कटा बात जी .. एफ दि आई की माया सभी को घेरे हुई है ...

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  4. बहतरीन , करारा व्यंग और एक तल्ख़ सच्चाती से रूबरू कराती प्रस्तुति*********^^^^^^^^***********ग्राहक भी खुशहाल, मिले मामा परदेशी ।
    ईस्ट-इंडिया काल, लूट करते क्या वेशी ?

    रविकर बड़े दलाल, बटोरेंगे अब ठोंगे ।
    दस करोड़ बदहाल, आप भी इनमें होंगे ।।*****************************

    ऍफ़ डी आई बन रही, इन सब की हत्यार ।
    ग्राम नगर संसद सड़क, बिचौलिया भरमार ।

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  5. रविकर जी,पढ़े जा रही हूँ.अभी तो निर्णय का इंतज़ार है.
    'भय बिन होय न प्रीत'
    नीति की बात कौन सुनता है ,भय का अंकुश ही कारगर होता है.

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