(1)
यादें मत विस्मृत करो, चाहे जैसा स्वाद |
यादें मत विस्मृत करो, चाहे जैसा स्वाद |
खट्टी-मीठी मस्त पर, दे कड़ुवी को दाद |
दे कड़ुवी को दाद, इल्तिजा वो ठुकराये |
जाया की फरियाद, किन्तु कविता तो आये |
कर, कविता कर याद, याद कर रविकर वादे |
रहे सदा आबाद, बोल कर भाव नया दे ||
(2)
झूठा वादा माँ करें, भरे कटोरी खीर |
चन्दा मामा आ, कहे, बच्चा बड़ा शरीर |
बच्चा बड़ा शरीर, तभी पापा आ जाता |
आओ मेरे पास, चलो बाहर, बहलाता |
झूठ साँच ले बोल, दिखाए प्रेम अनूठा |
है रविकर कविराय, परम-हितकारी झूठा ||
तुष्टिकरण बिल्कुल नहीं, कर्म धर्म रक्षार्थ |
कर्म धर्म रक्षार्थ, धर्म ही देश बचाये |
रे विमूढ़ रे पार्थ, नहीं फिर अवसर पाये |
रविकर सुधर तुरन्त, उन्हें दे नहीं सलामी |
वही डुबाते देश, वही ला रहे सुनामी ||
वाह !
ReplyDeleteयादें कहाँ जाती हैं साथ ही रहती हैं ... जैसे आपकी कुंडलियों की मिठास ...
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