Tuesday, 2 February 2016

अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता

विवेचना विस्तृत करे, हिन्दु सनातन धर्म |
अणिमा महिमा सहित हैं, अष्ट सिद्धियां कर्म |
अष्ट सिद्धियां कर्म, प्राप्तिका भारी गरिमा | 
है प्रकाम्य वैशित्व, बहुत ही हलकी लघिमा |
फिर अंतर्मितित्व,  सिद्धि रविकर आलेखन |
अंतिम है ईशित्व,  यही सम्पूर्ण विवेचन ||
(१)
हनुमत अणिमा सिद्धि से, सूक्ष्म रूप लें धार । 
सीता के दर्शन करें, दिया लंकिनी तार ।।  

(२)
हनुमत महिमा सिद्धि से, करें बदन विस्तार। 
सुरसा संकट से तभी, पाते झटपट पार ॥ 

(३)
हनुमत लघिमा सिद्धि से, करें समंदर पार । 
लाकर के संजीवनी, करवाते उपचार ॥ 

(४)
बजरंगी ईशित्व से, ले हर सत्ता जान । 
करते भ्रमण त्रिलोक में, सीता का वरदान ॥

(५)
बजरंगी वैशित्व से, अजर अमर अविनाश । 
युगों युगों से कर रहे, अवधपुरी में वास॥ 

(६)
वे प्रकाम्य सी सिद्धि से, धरते रूप अनेक ।  
 उनका ब्राह्मण रूप था, उनमे से ही एक ॥ 

(७)
बजरंगी की प्राप्तिका, कुछ भी सके बनाय। 
रावण के दरबार में, ऊँचे बैठें जाय ।। 

(८)
यह अंतर्मितित्व झट, जाने जीव स्वभाव । 
कालनेमि मारा गया, असफल उसका दांव ॥  

4 comments:

  1. जय हनुमान..सुंदर और पठनीय पद्य..

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  2. ऐसा चरित्र फिर कभी रचा न जा सका

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  3. जय हनुमान ... ज्ञान का भण्डार तो वैसे भी बांटते हैं उर आप्पे विशेष कृपा है उनकी ... नमस्कार जी ...

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