विवेचना विस्तृत करे, हिन्दु सनातन धर्म |
अणिमा महिमा सहित हैं, अष्ट सिद्धियां कर्म |
अष्ट सिद्धियां कर्म, प्राप्तिका भारी गरिमा |
है प्रकाम्य वैशित्व, बहुत ही हलकी लघिमा |
फिर अंतर्मितित्व, सिद्धि रविकर आलेखन |
अंतिम है ईशित्व, यही सम्पूर्ण विवेचन ||
(१)
हनुमत अणिमा सिद्धि से, सूक्ष्म रूप लें धार ।
सीता के दर्शन करें, दिया लंकिनी तार ।।
(२)
हनुमत महिमा सिद्धि से, करें बदन विस्तार।
सुरसा संकट से तभी, पाते झटपट पार ॥
(३)
हनुमत लघिमा सिद्धि से, करें समंदर पार ।
लाकर के संजीवनी, करवाते उपचार ॥
(४)
बजरंगी ईशित्व से, ले हर सत्ता जान ।
करते भ्रमण त्रिलोक में, सीता का वरदान ॥
(५)
बजरंगी वैशित्व से, अजर अमर अविनाश ।
युगों युगों से कर रहे, अवधपुरी में वास॥
(६)
वे प्रकाम्य सी सिद्धि से, धरते रूप अनेक ।
उनका ब्राह्मण रूप था, उनमे से ही एक ॥
(७)
बजरंगी की प्राप्तिका, कुछ भी सके बनाय।
रावण के दरबार में, ऊँचे बैठें जाय ।।
(८)
यह अंतर्मितित्व झट, जाने जीव स्वभाव ।
कालनेमि मारा गया, असफल उसका दांव ॥
(१)
हनुमत अणिमा सिद्धि से, सूक्ष्म रूप लें धार ।
सीता के दर्शन करें, दिया लंकिनी तार ।।
(२)
हनुमत महिमा सिद्धि से, करें बदन विस्तार।
सुरसा संकट से तभी, पाते झटपट पार ॥
(३)
हनुमत लघिमा सिद्धि से, करें समंदर पार ।
लाकर के संजीवनी, करवाते उपचार ॥
(४)
बजरंगी ईशित्व से, ले हर सत्ता जान ।
करते भ्रमण त्रिलोक में, सीता का वरदान ॥
(५)
बजरंगी वैशित्व से, अजर अमर अविनाश ।
युगों युगों से कर रहे, अवधपुरी में वास॥
(६)
वे प्रकाम्य सी सिद्धि से, धरते रूप अनेक ।
उनका ब्राह्मण रूप था, उनमे से ही एक ॥
(७)
बजरंगी की प्राप्तिका, कुछ भी सके बनाय।
रावण के दरबार में, ऊँचे बैठें जाय ।।
(८)
यह अंतर्मितित्व झट, जाने जीव स्वभाव ।
कालनेमि मारा गया, असफल उसका दांव ॥
जय हनुमान..सुंदर और पठनीय पद्य..
ReplyDeleteवाह बहुत सुन्दर ।
ReplyDeleteऐसा चरित्र फिर कभी रचा न जा सका
ReplyDeleteजय हनुमान ... ज्ञान का भण्डार तो वैसे भी बांटते हैं उर आप्पे विशेष कृपा है उनकी ... नमस्कार जी ...
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