Sunday, 21 February 2016

रविकर गिरगिट एक से, रहे बदलते रंग

रविकर गिरगिट एक से, रहे बदलते रंग |
खिले गुलाबी ख़ुशी मन, हो सफ़ेद जब दंग |

हो सफ़ेद जब दंग, रचे रचना गड़बड़ सी |
झड़े हरेरी सकल, होय गर बहसा-बहसी |

बदन क्रोध से लाल, हुआ पीला तन डरकर |
है बदरंगी हाल, कृष्ण-काला मन रविकर ||

4 comments:

  1. आपने लिखा...
    कुछ लोगों ने ही पढ़ा...
    हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
    इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना दिनांक 23/02/2016 को पांच लिंकों का आनंद के
    अंक 221 पर लिंक की गयी है.... आप भी आयेगा.... प्रस्तुति पर टिप्पणियों का इंतजार रहेगा।

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  2. है बदरंगी हाल, कृष्ण-काला मन रविकर....बहुत बढ़ि‍या

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