Thursday, 18 February 2016
गूँथ स्वयं को मातु, बनाओ तुम तो रोटी-
रोटी सा
बेला
बदन,
अलबेला
उत्साह |
दो बेला
हर दिन सिके, किन्तु नहीं परवाह |
किन्तु नहीं परवाह, सभी की भूख मिटाती |
पर बच्चे
बेलाग
, अकेले मर-खप जाती |
कर रविकर को माफ़, हुई यह संतति खोटी |
गूँथ स्वयं को मातु, बनाओ तुम तो रोटी ||
2 comments:
नवनीत राय 'रुचिर'
19 February 2016 at 18:19
परम पूज्यवर , बहुत खूब । सादर नमन ।
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सुशील कुमार जोशी
19 February 2016 at 20:05
बहुत सुन्दर ।
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परम पूज्यवर , बहुत खूब । सादर नमन ।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ।
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