रमिया रोजाना मरे, मियां करे उत्पात।
हाड़-मॉस देती जला, रहा निकम्मा ताप।
रहा निकम्मा ताप, बाप बनता ही रहता।
तीन ढाक के पात, खुदा की नेमत कहता।
दारू चखना रोज, गिनाये हरदिन कमियां।
मार खाय भरपेट, रखे फिर रोजा रमिया।।
हाड़-मॉस देती जला, रहा निकम्मा ताप।
रहा निकम्मा ताप, बाप बनता ही रहता।
तीन ढाक के पात, खुदा की नेमत कहता।
दारू चखना रोज, गिनाये हरदिन कमियां।
मार खाय भरपेट, रखे फिर रोजा रमिया।।
बढ़िया ।
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