Wednesday, 1 June 2016
किन्तु नारि पे नारि, स्वयं ही पड़ती भारी-
नारी अब अबला नहीं, कहने लगा समाज ।
है घातक हथियार से, नारि सुशोभित आज ।
नारि सुशोभित आज, सुरक्षा करना जाने ।
रविकर पुरुष समाज, नहीं जाए उकसाने ।
किन्तु नारि पे नारि, स्वयं ही पड़ती भारी |
पहली ढाती जुल्म, तड़पती दूजी नारी ।|
4 comments:
सुशील कुमार जोशी
1 June 2016 at 23:12
बढ़िया :)
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Asha Joglekar
3 June 2016 at 06:56
Such kaha,nari keep dushman naree hee rahi hai
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गगन शर्मा, कुछ अलग सा
4 June 2016 at 01:53
मोहे न नारी नारी के रुपा
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SM
15 June 2016 at 18:51
बहुत खूब।
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बढ़िया :)
ReplyDeleteSuch kaha,nari keep dushman naree hee rahi hai
ReplyDeleteमोहे न नारी नारी के रुपा
ReplyDeleteबहुत खूब।
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