बेसुरम पर --
बाप रे! फिर चुनाव!!
ढोता बोझा तंत्र का, मन्त्र एक मतदान |
सरकारी खच्चर पड़ा, इत-उत ताक उतान |
इत-उत ताक उतान, बोझ से मन घबराया |
हिम्मत कर पुरजोर, तंत्र का बोझ उठाया |
बोले पर गणतंत्र, उठा के क्यूँ तू रोता |
सरकारी खच्चर पड़ा, इत-उत ताक उतान |
इत-उत ताक उतान, बोझ से मन घबराया |
हिम्मत कर पुरजोर, तंत्र का बोझ उठाया |
बोले पर गणतंत्र, उठा के क्यूँ तू रोता |
प्रभू उठाये तोय, उठाये जैसे ढोता ||
बहुत सुन्दर और सटीक प्रस्तुति...
ReplyDeleteचलो बनायें स्वप्न नया फिर..
ReplyDeleteबहुत दिनों के बाद दिखे!
ReplyDeletebahut khoob sateek prastuti.
ReplyDeleteहोता तो यही है....
ReplyDeleteसही ..सही गुप्ताजी ! मत तो दान है ! इसके बाद कुछ न सोचें !
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