Friday, 27 January 2012

मेरी टिप्पणी

 बेसुरम पर --

बाप रे! फिर चुनाव!!

ढोता बोझा तंत्र का, मन्त्र एक मतदान |
सरकारी खच्चर पड़ा, इत-उत ताक उतान |

इत-उत ताक उतान, बोझ से मन घबराया |
हिम्मत कर पुरजोर, तंत्र का बोझ उठाया |

बोले पर गणतंत्र, उठा के क्यूँ तू रोता |
प्रभू उठाये तोय, उठाये जैसे ढोता ||

6 comments:

  1. बहुत सुन्दर और सटीक प्रस्तुति...

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  2. चलो बनायें स्वप्न नया फिर..

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  3. बहुत दिनों के बाद दिखे!

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  4. सही ..सही गुप्ताजी ! मत तो दान है ! इसके बाद कुछ न सोचें !

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