Monday, 12 December 2016

लो कुंडलियां मान, निवेदन करता रविकर


क्षरण छंद में हो रहा, साहित्यिक छलछंद।
किन्तु अभी भी कवि कई, नीति नियम पाबंद।
नीति नियम पाबंद, बंद में भाव कथ्य भर।
शिल्प सुगढ़ लय शुद्ध, मिलाये तुक भी बेह'तर।
लो कुंडलियां मान, निवेदन करता रविकर।
मिला आदि शब्दांश, अंत के दो दो अक्षर।।

2 comments:

  1. दिनांक 15/12/2016 को...
    आप की रचना का लिंक होगा...
    पांच लिंकों का आनंद... https://www.halchalwith5links.blogspot.com पर...
    आप भी इस प्रस्तुति में....
    सादर आमंत्रित हैं...

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