Wednesday 8 February 2017

रविकर की कुण्डलियाँ

सामाजिक 

मुखड़े पे मुखड़े चढ़े, चलें मुखौटे दाँव |
शहर जीतते ही रहे, रहे हारते गाँव |
रहे हारते गाँव, पते की बात बताता।
गया लापता गंज, किन्तु वह पता न पाता।
हुआ पलायन तेज, पकड़िया बरगद उखड़े |
खर-दूषण विस्तार, दुशासन बदले मुखड़े ||


जौ जौ आगर विश्व में, कान काटते लोग।
गलाकाट प्रतियोगिता, है मुश्किल संयोग।
है मुश्किल संयोग, नाक की चिंता छोड़ो।
रखो ताक पर नाक, रखे जब लोग करोड़ो।
कौन सकेगा काट, करेगा कुत्ता भौ भौ।
चलो चाल मदमस्त, बढ़ो नित आगे जौ जौ।।



कुदरत को कुतरे मनुज, दनुज मनुज को खाय।
पोंगा पंडित मौलवी, रहे खलीफा छाय।
रहे खलीफा छाय, किताबी ज्ञान बघारे।
कत्लो गारद लूट, रोज मानवता हारे।
कह रविकर कविराय, बदलनी होगी फितरत।
नहीं करेगी माफ, अन्यथा सहमी-कुदरत।।


देना हठ दरबान को, अहंकार कर पार्क |
छोड़ व्यस्तता कार में, फुरसत पे टिक-मार्क |
फुरसत पर टिक-मार्क, उलझने छोड़ो नीचे |
लिफ्ट करो उत्साह, भरोसा रिश्ते सींचे |
करो गैलरी पार, साँस लंबी भर लेना |
प्रिया खौलती द्वार, प्यार से झप्पी देना ||


भूखा चीता मार मृग, लेता भूख मिटाय।
मृग के प्रति संवेदना, जग में कहां दिखाय।
जग में कहां दिखाय, खाय के डकरे चीता।
चीता करे शिकार, पढ़े मृग केवल गीता
हुई पढ़ाई व्यर्थ, घास का जंगल सूखा।
मरते मृग बेमौत, मारता चीता भूखा।।


बानी सुनना देखना, खुश्बू स्वाद समेत।
पाँचो पांडव बच गये, सौ सौ कौरव खेत।
सौ सौ कौरव खेत, पाप दोषों की छाया।
भीष्म द्रोण नि:शेष, अन्न पापी का खाया ।
लसा लालसा कर्ण, मरा दानी वरदानी।
अन्तर्मन श्री कृष्ण, बोलती रविकर बानी।।


सद्कर्मी रचता रहे, हितकारी साहित्य |
मानवता को दे जगा, करे श्रेष्ठतम कृत्य |
करे श्रेष्ठतम कृत्य, धर्म जब हो बेचारा |
होय भोग का भृत्य, दिखे जब दिन में तारा |
होंय सफल तब विज्ञ, सुधारें दुष्ट अधर्मी |
भारत बने महान, बने रविकर सद्कर्मी ||

अच्छाई का फायदा, ज्यादा लिया उठाय।
मूर्ख बनाने लग पडे, फिर क्या बचा उपाय।
फिर क्या बचा उपाय, बुरा बन जाय आदमी।
बने भावना शून्य, मतलबी कट्टर वहमी।
कह रविकर चालाक, समझ उनकीअधमाई।
रहता उनसे दूर, दूर रखता अच्छाई।।

कंधे पर होकर खड़ा, आनन्दित है पूत।
बड़ा बाप से मैं हुआ, करता पेश सुबूत।
करता पेश सुबूत, बाप बच्चे से कहता।
और बनो मजबूत, पैर तो अभी बहकता।
तुझको सब कुछ सौंप, लगाऊंगा धंधे पर।
बड़ा होय तब पूत , चढ़ूगा जब कंधे पर।।

आध्यात्मिक / सुभाषित 

तक तक कर पथरा गईं, आँखे प्रभु जी आज |
कब से रहा पुकारता, बैठे कहाँ विराज |
बैठे कहाँ विराज, हृदय से सदा बुलाया ।
नाम कृपा निधि झूठ, कृपा अब तक नहिं पाया |

सुनिए यह चित्कार, बुलाये रविकर पातक |
मिटा अन्यथा याद, याद प्रभु तेरी घातक ॥

बना क्रोध भी पुण्य जब, झपटा गिद्ध जटायु। 
सहनशीलता भीष्म की, कर दे दूषित वायु।
कर दे दूषित वायु, दुशासन नंगा नाचा।
शर-शैया पर पाप, मारता रहा तमाचा।
पाया गोद जटायु, बना लेते प्रभु अपना।
होता देख अधर्म, रहे चुप रविकर अब ना।।

भूलो सब, कह बोलते, पैसा समय भविष्य।
क्रमश: अर्जन अनुसरण, करलो उद्यम शिष्य।
करलो उद्यम शिष्य, किन्तु कहती गुरुवाणी।
सुमिरन करो सदैव, समर्पण करके प्राणी।
करो परम पद प्राप्त, उछलकर नभ को छू लो।
मनवांछित फल पाय, मगन मन खुद को भूलो।

जब है उम्र ढलान पर, समय सरकता तेज।
तेज घटा तो क्या हुआ, जो भी बचा सहेज।।
जो भी बचा सहेज, इंतजारी अब छोड़ो।
इंतजाम प्रारम्भ, ईश से नाता जोड़ो।
काम क्रोध मद त्याग, मोक्ष की बारी अब है।
रविकर का वैराग्य, किन्तु हे ईश अजब है।।

शांता भगिनी राम की, भूले तुलसीदास |
त्याग-तपस्या बहन की, भूल चुका इतिहास |
भूल चुका इतिहास, लगे यह रिश्ता नीरस |
माँ समान सम्मान, मिले बहनों को बरबस |
लेकिन रविकर क्षोभ, लगा रिश्तों का ताँता |
किन्तु उपेक्षित दीख, राम की भगिनी शांता ||

कलाकार दोनों बड़े, रचते बुत उत्कृष्ट।
लेकिन प्रभु के बुत बुरे, करते काम निकृष्ट।
करते काम निकृष्ट, परस्पर लड़ें निरन्तर।
शिल्पी मूर्ति बनाय, रखे मंदिर के अंदर।
करते सभी प्रणाम, फहरती उच्च पताका।
रविकर तू भी देख, धरा पर असर कला का।।

भरत मनाने आ रहे, मार्ग कंटकाकीर्ण।
करो शूल को फूल माँ, रघुपति हृदय विदीर्ण।
रघुपति हृदय विदीर्ण, भरत काँटे सह लेगा।
मेरे प्रति अति स्नेह, किन्तु दारुण दुख देगा।
इसी मार्ग से भ्रात, गये काँटों में बिधकर।
परेशान हों भरत, बहाये अश्रु भराभर।

केवट अपने हाथ पर, धुला पैर रखवाय।
धोता दूजा पैर तो, राम चंद्र गिर जांय।
राम चंद्र गिर जांय, देख गति केवट बोले।
पकड़ो मेरा माथ, ताकि यह देह न डोले।
कहें राम जब भक्त, गिरे मैं थामूं झटपट।
आज भक्त ले थाम, धन्य है रविकर केवट।।

आया शिशु तो स्वच्छ थे, दिल दिमाग मन देह ।
काम क्रोध मद की मगर, प्रलयंकारी मेह।
प्रलयंकारी मेह, प्रभावित दिल हो जाता।
करता रक्त विशुद्ध, लालिमा किन्तु गँवाता।
दिल काला हो जाय, द्वेष ने सतत् जलाया।
होते बाल सफेद, धुआँ जो उड़कर आया।।

छींका पर घंटी बँधी, करें कृष्ण मनुहार।
मौन साधकर घंटिका, करती फिर उपकार।
करती फिर उपकार, गोप-गण माखन खाते।
किन्तु श्याम ज्यों ग्रास, होंठ से दिखे लगाते।
बजी आदतन तेज, खींचती ध्यान सभी का।
लगा रहे प्रभु भोग, देख लो बोला छींका।।

भावुकता में मत बहो, रविकर रहो सतर्क।
दोनों हों यदि संतुलित, पड़े नहीं तब फर्क।
पड़े नहीं तब फर्क, संतुलन करना सीखो।
कर योगासन ध्यान, संतुलित करते दीखो।
पता नहीं कब लोग, मार के भागें चाबुक।
रहना सदा सतर्क, नहीं होना अति भावुक।।

दौड़ाये हर कार को, कुत्ता बारम्बार।
लक्ष्य सुनिश्चित है मगर, पल्ले पड़ती हार।
पल्ले पड़ती हार, पकड़कर क्या कर लेगा।
मानव यूँ ही दौड़, अन्ततः पाता ठेंगा।
रविकर तू मत दौड़, महामाया भरमाये।
लोभ मोह मद द्वेष, रोज कुत्ता दौड़ाये।।

मन से पढ़ो किताब तो, पावन कर दे देह ।
कानों में मिश्री घुले, प्राणिजगत से नेह ।
प्राणिजगत से नेह, निभाती रिश्ता हरदम ।
लेकर जाओ गेह, मित्र ये रहबर अनुपम ।
मानस मोती पाय, अघाए रविकर सज्जन।
साबुन तेल बगैर, शुद्ध कर देती तन-मन।



हास्य 

विनती सम मानव हँसी, प्रभु करते स्वीकार।
हँसा सके यदि अन्य को, कर दे बेड़ापार।
कर दे बेड़ापार, कहें प्रभु हँसो हँसाओ।
रहे बुढ़ापा दूर, निरोगी काया पाओ।
हँसी बढ़ाये उम्र, बढ़े स्वासों की गिनती।
रविकर निर्मल हास्य, प्रार्थना पूजा विनती।।

रविकर यदि राशन दिया, दे वह भूख मिटाय।
यदि मकान देते बना, घर बनाय वह भाय।
घर बनाय वह भाय, भाय वह चौबिस घंटा।
किन्तु करो यदि रार, करेगी वह भी टंटा।
लल्लो चप्पो ढेर, करे हैं मर्द अधिकतर।
हे बच्चों की माय, दंडवत करता रविकर।

भारी भरकम बुलट पे, गर्ल फ्रेंड बैठाय।
किया लांग-ड्राइव मगर, भारी शोर सताय।
भारी शोर सताय, बेच एक्टिवा ख़रीदा।
पत्नी बनकर प्रिया, खोल दी लेकिन दीदा।
दिया एक्टिवा बेच, उतरती प्यार खुमारी।
लाया पुनः खरीद, बुलट उससे भी भारी।

लेकर बैठे विष्णु शिव, क्रमश: चक्र त्रिशूल।
धनुष धारते राम जी, जो पति के अनूकूल ।
जो पति के अनुकूल, पत्नियों संग विराजे।
श्याम सलोने कृष्ण, हाथ क्यों बंशी साजे।
पत्नी करती प्रश्न, कहे डर डरकर रविकर।
प्रिया संग हैं कृष्ण, चैन की बंशी लेकर।।

अभ्यागत गतिमान यदि, दुर्गति से बच जाय।
दुख झेले वह अन्यथा, पिये अश्रु गम खाय।
पिये अश्रु गम खाय, अतिथि देवो भव माना।
लेकिन दो दिन बाद, मारती दुनिया ताना।
कह रविकर कविराय, करा लो बढ़िया स्वागत।
शीघ्र ठिकाना छोड़, बढ़ो आगे अभ्यागत।।

सोफा पे पहुना पड़ा, लंठ लवासी ढीठ ।
अतिथि-यज्ञ से दग्ध मन, फिर भी बोलूं मीठ ।
फिर भी बोलूं मीठ, पीठ मैं नहीं दिखाऊं ।
रोटी शरबत माछ, रोज पकवान खिलाऊं ।
रगड़ा चन्दन मुफ्त, चुने खुद से ही तोफा ।
हिला गया कुल-बजट, तोड़ के मेरा सोफा ।

बेलन ताने देख के, तनी-मनी घबराय |
लेकिन ताने मार के, जियरा रही जलाय |
जियरा रही जलाय, खरी-खोटी खर-मंडल |
रविकर मौका पाय, दिखाती अबला छल बल |
मनमाना व्यवहार, नहीं ब्रह्मा भी जाने |
जब ताने में धार, व्यर्थ क्यों बेलन ताने ||

बोदा लड़का घूमता, छुटका बड़ा सयान।
गाली खाए नित्य यह, वह बनता विद्वान ।
वह बनता विद्वान, विलायत गया कमाने।
व्याही गोरी मेम, और भी कई बहाने |
अब तो रविकर वृद्ध, करे नित सेवा बड़का ।
दे देना प्रभु एक, उसे भी बोदा लड़का ||

तुम गुरूर में रह रही, सजा सजाया फ्लैट।
रहता मैं औकात में, बिछा फर्श पर मैट। 
बिछा फर्श पर मैट, बसा था तेरे दिल में।
रविकर आठों याम, जमाया रँग महफिल में।
रहो होश में बोल, निकाली तुम सुरूर में।
इधर होश औकात, उधर हो तुम गुरूर में।


व्यंग्य 
बापू की बकरी बंधी, रस्सी वही प्रसिद्ध।
राजगुरू सुखदेव का, फंदा नोचें गिद्ध।
फन्दा नोचें गिद्ध, चन्द्रशेखर की गोली।
स्वार्थ हुवे सब सिद्ध, सफल चाचा की टोली।
गाँधी नाम भुनाय, नहीं सत्ता से चूकी।
क्रान्तिवीर निष्प्राण, बोल मन जय बापू की।।

आये गाँधी नर्क से, दो टुकड़े करवाय।
हाथ छोड़ के, "गोड़ से", चरखा रहे चलाय।
चरखा रहे चलाय, सामने तीनों बंदर।
रख के मुँह पर हाथ, हँसे इक मस्त-कलंदर।
आँख दूसरा मूँद, अदालत रोज चलाये।
कान बन्द कर अन्य, यहाँ सत्ता में आये।

कम्बल देंगे भेड़ को, खरगोशों को हैट।
हर घोड़े को नाल दूं, बिल्लों को दूँ रैट।
बिल्लों को दूँ रैट, इलेक्शन बस जितवाओ।
बहुमत की सरकार, अरे रविकर बनवाओ।
कहता रँगा सियार, प्रान्त यह होगा अव्वल।
पियें शुद्ध घी रोज, ओढ़कर भेड़ें कम्बल।।

लोकतंत्र की शक्ल में, दिखने लगी चुड़ैल |
हुश्न परी सा है मगर, मन-मिजाज में मैल |
मन-मिजाज में मैल, मौज मतदाता मारे |
जाति-धर्म को वोट, बड़े सिद्धांत बघारे |
फिर जन गण दे रोय, जीत हो तंत्र-मंत्र की।
वोट बैंक ले खाय, मलाई लोकतंत्र की ।।

बढ़ती भीड़ मशान में, हस्पताल में मर्ज।
दारुण दुर्घटना घटे, मनुज चुकाये कर्ज।
मनुज चुकाये कर्ज, भ्रूण हत्या नित होवे।
दाहिज करता क़त्ल, गली में कुत्ता रोवे ।
धूर्त बजाते गाल, चुड़ैलें सिर पर चढ़तीं |
दंगा नंगा नाच, दूरियां दिल में बढ़तीं ||

साहित्यिक पुरस्कार
खले चाँदनी चोर को, व्यभिचारी को भीड़।
दूजे के सम्मान से, कवि को ईर्ष्या ईड़।
कवि को ईर्ष्या ईड़, बने अपने मुंह मिट्ठू।
कवि सुवरन बिसराय, कहे सरकारी पिट्ठू।
रविकर तू भी सीख, किन्तु पहले तो छप ले।
मांगे मिले न भीख, जरा चमचई परख ले।।

रोमन में हिन्दी लिखी, रो मन बुक्का फाड़।
देवनागरी स्वयं की, रही दुर्दशा ताड़।
रही दुर्दशा ताड़, दिखे मात्रा की गड़बड़।
पाश्चात्य की आड़, करे अब गिटपिट बड़ बड़।
सीता को बनवास, लगाये लांछन धोबन।
सूर्पनखा की जीत, लिखें खर दूषण रोमन।।

जितना भूखा जानवर, उतना घातक क्रूर।
सिंहारे से दूर अति, दंतारे से दूर।
दंतारे से दूर, किन्तु मनई से बचना।
ज्यों ज्यों भरता पेट, होय यह काली रसना।
खतरनाक हो जाय, कहे क्या रविकर कितना।
हिंसक आदमखोर, जानवर भूखा जितना।।

छपने का अखबार में, जिन्हें रहा था चाव।
समय बीतने पर बिके, वे रद्दी के भाव।।
वे रद्दी के भाव, बनाये ठोंगा कोई।
जो रचि राखा राम, वही रविकर गति होई।
मिर्ची नमक लपेट, पेट पूजा कर फेका।
कोई दिया जलाय, नाम मत ले छपने का।।

नारि-सशक्तिकरण 

बिटिया पापड़ बेल के, करे कढ़ाई साफ।
बेटा गुलछर्रे उड़ा, सोये ओढ़ लिहाफ।
सोये ओढ़ लिहाफ, दुलारा बेटा माँ का।
सर्विस वाली देख, भिड़ाता रविकर टाका।
करवाती यह काम, खड़ी कर देती खटिया।
नारि नारि में फर्क, सास की शातिर बिटिया ।।

पैरों पर होना खड़ी, सीखो सखी जरुर ।
आये जब आपद-विपद, होना मत मजबूर ।
होना मत मजबूर, सिसकियाँ नहीं सहारा ।
कन्धा क्यूँकर खोज, सँभालो जीवन-धारा ।
समय हुआ विपरीत, भरोसा क्यूँ गैरों पर |
लिखो भाग्य लो जीत, खड़ी हो खुद पैरों पर ।।

बना चपाती रच रही, गृहणी छंद महान।
बैठी सब्जी काटती, बड़े-बड़ों के कान।
बड़े बड़ों के कान, नई चीजें नित दीखें।
तरह तरह के छौंक, लगा के कविता सीखें।
उच्चकोटि के छंद, आज मां बहन सुनाती।
धन्य फेसबुक धन्य, पेट भर बना चपाती।

बेटी ठिठकी द्वार पर, बैठक में रुक जाय।
लगा पराई हो गयी, पिये चाय सकुचाय। 
पिये चाय सकुचाय, आज वापस जायेगी।
रविकर बैठा पूछ, दुबारा कब आयेगी।
देखी पति की ओर , दुशाला पुन: लपेटी।
लगा पराई आज, हुई है अपनी बेटी।।
दोहा
बेटी हो जाती विदा, लेकिन सतत् निहार।
नही पराई हूँ कहे, बारम्बार पुकार।।



विषाद 

सारे ही दुख-दर्द के, जड़ में तेरी याद |
मर-मर हम मरहम मलें, फिर भी बहे मवाद।
फिर भी बहे मवाद, घाव में अक्श तुम्हारा ।
उस झुरमुट से किंतु, देख तू टूटा तारा ।
पहला-पहला प्यार, प्रिया अनवरत पुकारे ।
तू भी कर ले याद, मिटें रविकर दुख सारे ।।

कथा-कविता 
१)
आया जो तूफान तो, रविकर नौका डूब।
निर्जन टापू में फँसा, त्राहिमाम् कर ऊब।
त्राहिमाम् कर ऊब, आज ही कुटी बनाया।
ऊपरवाला किन्तु, आग उस पर बरसाया।
ऊँची लपटें ताक, व्यक्ति प्रभु पर गुस्साया।
किन्तु उन्ही को देख, वहाँ राहत दल आया।।
दोहा
ईश्वर पर विश्वास रख, विचलित मत हो मीत।
छुपी हुई संघर्ष में, रविकर तेरी जीत।।
२)
आया भिक्षा माँगकर, धूनी रहा रमाय।
तब अपंग लोमड़ वहाँ, साधु ध्यान भटकाय।
साधु ध्यान भटकाय, शाम होने को आई।
तभी गर्जना पास, सिंह की पड़ी सुनाई।
चढ़ा वृक्ष पर साधु, उथर लोमड़ हरसाया।
बोटी लेता खाय, सिंह जो लेकर आया।
लीला प्रभु की देखकर, भिक्षाटन दे छोड़।
वह समाधि लेता लगा, हो लोमड़ से होड़।
हो लोमड़ से होड़, सिंह तो रोज खिलाये।
लेकिन मरणासन्न, साधु टकटकी लगाये।
पूछा राही एक, स्वास्थ्य जब देखा ढीला।
साधु रहा बतलाय, सिंह लोमड़ की लीला।।
दोहा
गलत समझते साधु तुम, ईश्वर का संदेश।
हरो सिंह बनकर सदा, निर्बल के तुम क्लेश।।

3)
झाड़ी में हिरणी घुसी, प्रसव काल नजदीक।
इधर शिकारी ताड़ता, उधर शेर दे छींक।
उधर शेर दे छींक, गरजते बादल छाये।
जंगल जले सुदूर, देख हिरणी घबराये।
चूक जाय बंदूक, शेर को मौत पछाड़ी। 
शुरू हुई बरसात, सुने किलकारी झाड़ी।।




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