Monday, 22 April 2013

नष्ट पुरुष से हो चुका, नारिजगत का मोह-

छली जा रहीं नारियां, गली-गली में द्रोह ।
नष्ट पुरुष से हो चुका, नारिजगत का मोह |

नारिजगत का मोह, गोह सम नरपशु गोहन ।
बनके गौं के यार, गोरि-गति गोही दोहन ।

नरदारा नरभूमि, नराधम हरकत छिछली । 
फेंके फ़न्दे-फाँस , फँसाये फुदकी मछली । ।  

गोहन = साथी-संगी 
गौं के यार=अपना अर्थ साधने वाला
गोही = गुप्त  
नरदारा=नपुंसक 
नरभूमि=भारतवर्ष 
फुदकी=छोटी चिड़िया 


4 comments:

  1. बहुत अच्छी कुण्डलियाँ...भावपूर्ण.

    सादर
    अनु

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  2. आपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है के आपकी यह विशेष रचना को आदर प्रदान करने हेतु हमने इसे आज ३० मई, २०१३, बृहस्पतिवार के ब्लॉग बुलेटिन - जीवन के कुछ सत्य अनुभव पर लिंक किया है | बहुत बहुत बधाई |

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  3. वाह ,बेह्तरीन अभिव्यक्ति ...!!शुभकामनायें.

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