तालू से लगती नहीं, जिभ्या क्यूँ महराज |
हरदिन पलटी मारते, झूँठों के सरताज |
झूँठों के सरताज, रहे सर ताज सजाये |
एकमात्र ईमान, किन्तु दुर्गुण सब आये |
मिर्च-मसाला झोंक, पकाई सब्जी चालू ।
दे *दिल्ले में आग, बिगाड़े आप रतालू ॥
*किवाड़ के पीछे लगा लकड़ी का चौकोर खूँटा
मोदनीय वातावरण, बाजीगर सर-ताज-
चिड़ियाघर कायल हुआ, बदल गया अंदाज ।
मोदनीय वातावरण, बाजीगर सर-ताज ।
बाजीगर सर-ताज, बाज गलती से आये ।
लेकिन गिद्ध समाज, बाज को गलत बताये ।
कौआ इक चालाक, बाँट-ईमानी पुड़िया ।
मिस-मैनेज कर काम, रोज भड़काए चिड़िया ॥
तालू से लगती नहीं, जिभ्या क्यूँ महराज |
ReplyDeleteहरदिन पलटी मारते, झूँठों के सरताज |
झूँठों के सरताज, रहे सर ताज सजाये |
एकमात्र ईमान, किन्तु दुर्गुण सब आये |
मिर्च-मसाला झोंक, पकाई सब्जी चालू ।
दे *दिल्ले में आग, बिगाड़े आप रतालू ॥
बढ़िया व्यंग्य श्रीमान आलू जी पर जो शैफर्ड प्रधानमन्त्री बनने के खाब देख रहें हैं .
'मिर्च-मसाला झोंक, पकाई सब्जी चालू ।'
ReplyDelete- बेचारे की पोल खुली जा रही है !
वाह भई वाह !
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