Tuesday, 25 February 2014

करवाये दल बदल, बैल तेरह बहकाये-

कड़े बयानों के लिए, चुलबुल करती दाढ़ |
छोड़ केकड़े को पड़ा, मकड़े पीछे साँढ़ |

मकड़े पीछे सांढ़ ,जाल मकड़ा फैलाये |
करवाये दल बदल, बैल तेरह बहकाये |

किन्तु बचे नौ बैल, चार मकड़े ने जकड़े |
मारे मन का मैल, मरे तू भी ऐ मकड़े ||

4 comments:

  1. बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति आदरणीय।

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  2. मौसम ही इनका है ......

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  3. आपकी शैली अदभुत है.
    रविकर जी रहस्यमय है यह गुत्थी.
    कुछ प्रकाश और डालियेगा.

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