पाना-वाना कुछ नहीं, फिर भी करें प्रचार |
ताना-बाना टूटता, जनता करे पुकार |
ताना-बाना टूटता, जनता करे पुकार |
जनता करे पुकार, गरीबी उन्हें मिटाये |
राजनीति की मार, बगावत को उकसाए |
आये थे जो आप, मिला था एक बहाना |
किन्तु भगोड़ा भाग, नहीं अब माथ खपाना ||
साही की शह-मात से, है'रानी में भेड़ |
खों खों खों भालू करे, दे गीदड़ भी छेड़ |
दे गीदड़ भी छेड़, ताकती ती'जी ताकत |
हाथी बन्दर ऊंट, करे हरबार हिमाकत |
अब निरीह मिमियान, नहीं इस बार कराही |
की काँटों से प्यार, सवारी देखे साही ||
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (25-02-2014) को "मुझे जाने दो" (चर्चा मंच-1534) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बढ़िया व्यंग्य चित्र चुनाव पूर्व झलकियों के .
ReplyDeleteवाह ! बहुत खूब ।
ReplyDeleteसुन्दर है मनोहर है .
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर कुण्डलियाँ ...
ReplyDeleteआये थे जो आप, मिला था एक बहाना |
किन्तु भगोड़ा भाग, नहीं अब माथ खपाना ||
.... यह भगोड़ा बहुत शातिर है .... लम्बा गेम प्लान है इसका .. इसको देश हित से मतलब नहीं है ...