पुत्र-जन्म देकर जगत, उऋण पितृ से होय ।
पुन्वंशा कैसे भला, माँ का कर्ज बिलोय ।
माँ का कर्ज बिलोय, जन्म पुत्रों को देती ।
रहती उनमें खोय, नहीं सृष्टी सुध लेती ।
सदा क्षम्य गुण-सूत्र, मगर कन्या न मारो ।
हुए पिता से उऋण, कर्ज चुपचाप उतारो ।।
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vaah bahut hi prernadayak uttam dohe.
ReplyDeleteसच है, यही सबको स्वीकार्य हो..
ReplyDeleteमर्द अर्द्ध - नारीश्वर है .क्योंकि वह एक एक्स -वाई इन्दिविज़्युअल है .
ReplyDeleteजरा सोचों उसके अन्दर का एक्स (नारी की कोमलता )मर जाए तब वह निरा ठूंठ न रह जाएगा .जबकि औरत मात्र एक्स -एक्स युग्म है .पुरुष में नारी मौजूद है नारी में पुरुष नहीं है .इसीलिए पुरुष ज्यादा कोमल है .साथ साथ बलिष्ट भी इसलिए नारीश्वर कहलायें हैं 'नटराज 'राजाओं के राजा शिव .
हाँ कन्याओं को मत मारो तुम्हारा ही एक हिस्सा मारा जाता है एक्स .