मरने की खातिर पुलिस, रोक सके के क़त्ल |
बनती नीति नितीश की, देखो सी एम् शक्ल |
देखो सी एम् शक्ल, हाथ पर हाथ धरे हैं-
हो हत्या अपहरण, नक्सली घात करे हैं |
नहीं रहा जूँ रेंग, हिलाया नहीं खबर ने |
सी एम् देते छोड़, पुलिस-पब्लिक को मरने ||
लिया पाक से बीज, खाद ढाका से लाये-
लिया पाक से बीज, खाद ढाका से लाये-
खीरा-ककड़ी सा चखें, हम गोली बारूद |
पचा नहीं पटना सका, पर अपने अमरूद |
पर अपने अमरूद, जतन से पेड़ लगाये |
लिया पाक से बीज, खाद ढाका से लाये |
बिछा पड़ा बारूद, उसी पर बैठ कबीरा |
बने नीति का ईश, जमा कर रखे जखीरा ||
नक्सल आतंकी कहीं, फिर ना जायें कोप |
नक्सल आतंकी कहीं, फिर ना जायें कोप |
शान्ति-भंग रैली करे, सत्ता का आरोप |
सत्ता का आरोप, निभाता नातेदारी |
विस्फोटक पर बैठ, मस्त सरकार बिहारी |
दशकों का अभ्यास, सँभाले रक्खा भटकल |
रैली से आतंक, इलेक्शन से हैं नक्सल ||
यथार्थपरक पंक्तियां.......
ReplyDeleteसमसामायिक सशक्त रचना...
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