(1)
पेशी साईँ की इधर, फूल बिछाते फूल |
सेना है नारायणी, साईँ करो क़ुबूल |
साईँ करो क़ुबूल, किन्तु नहिं जुर्म कबूला |
झोंक आँख में धूल, सतत दक्षिणा वसूला |
बेशक नारा ढील, किन्तु फॉलोवर वेशी |
भागा लाखों मील, हुई दिल्ली में पेशी ||
(2)
सेना जब नारायणी, दुर्योधन के संग |
टिका रहे कुरुक्षेत्र में, कामी संत मलंग |
कामी संत मलंग, अंग से अंग लगाये |
किन्तु करे न जंग, व्यर्थ बहुरुपिया धाये |
गदा उठा ले भीम, कमर के नीचे देना |
भूल जाय दुष्कर्म, भक्त की चेते सेना ||
जबरदस्त ... सटीक ... सामयिक ...
ReplyDeleteआनंद आ गया ...
वाह बहुत सुंदर कुण्डलियां !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कुण्डलियां
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शुक्रवार (06-12-2013) को "विचारों की श्रंखला" (चर्चा मंचःअंक-1453)
पर भी है!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर कुंडलियाँ.
ReplyDelete