Sunday 1 December 2013

यादें सुखद अतीत की, उज्जवल दिखे भविष्य -

हथेली में तिनका छूटने का अहसास

समय की मृत्‍यु


संतरी, पीले, भूरे, लाल रंग से 
सजा क्षितिज


यादें सुखद अतीत की, उज्जवल दिखे भविष्य |
वर्त्तमान की क्या कहें, भटके चंचल *ऋष्य |

भटके चंचल *ऋष्य, दृश्य दिखता है मारक |
थामे विशिख कराल, खड़ा सम्मुख संहारक |

यह रहस्य है गूढ़, तवज्जो इनपर ना दे |
वर्त्तमान को बूझ, याद रख बढ़िया यादें-
*विशेष मृग 

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति

    ReplyDelete
  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (02-112-2013) को "कुछ तो मजबूरी होगी" (चर्चा मंचःअंक-1449)
    पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete