Friday, 20 April 2012

साहब

बदबू  लगती  है बुरी, साब थामते सांस ।
मजदूरों की भीड़ यह, नहीं आ रही रास ।।

गई हसीना पास से, खुश्बू का एहसास ।
हालत नाजुक साब की, भरे सांस-उच्छ्वास।

चोट लगी मजदूर को, साब देत दुत्कार ।
पत्नी करती  याचना,  दें पच्चीस हजार ।

कुचला इक फुटपाथिया, साहब-कार फरार ।
वहीं सड़क पर वह मरा, बता रहा अखबार ।।

मैडम काफी सख्त हैं, करे नहीं परवाह ।
काफी-हाउस घूमती, साहब रहे कराह ।।


 

2 comments:

  1. सुन्दर व्यंग्य कणिकाएं /कुण्डलियाँ व्यंग्य विनोद की .

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