बदबू लगती है बुरी, साब थामते सांस ।
मजदूरों की भीड़ यह, नहीं आ रही रास ।।
गई हसीना पास से, खुश्बू का एहसास ।
हालत नाजुक साब की, भरे सांस-उच्छ्वास।
चोट लगी मजदूर को, साब देत दुत्कार ।
पत्नी करती याचना, दें पच्चीस हजार ।
कुचला इक फुटपाथिया, साहब-कार फरार ।
वहीं सड़क पर वह मरा, बता रहा अखबार ।।
मैडम काफी सख्त हैं, करे नहीं परवाह ।
काफी-हाउस घूमती, साहब रहे कराह ।।
वाह, बड़ी रोचक।
ReplyDeleteसुन्दर व्यंग्य कणिकाएं /कुण्डलियाँ व्यंग्य विनोद की .
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