Sunday, 15 April 2012

संजय भास्कर जी की शुभ रात्रि के सुभाषित पर--

 अपने बारे में अगर, खुद ही सोचें राम ।
बेढब दुनिया क्या करे, मुँह ढांपे आराम । 

मुँह ढांपे आराम, काम बढ़िया कर जाओ ।
रोया था तू आय, जाय के इन्हें रुलाओ ।

कर मानव-कल्याण, पूर कर पावन सपने ।
छोडो देना ध्यान, भटक ना जाओ अपने ।।

9 comments:

  1. बहुत बढ़िया ..................

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  2. कर मानव-कल्याण, पूर कर पावन सपने ।
    छोडो देना ध्यान, भटक ना जाओ अपने ..sahi bat.

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  3. सपनों में अपने, अपनों के सपने या सबके सपने अपने।

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  4. बहुत सुंदर दोहे....

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  5. भाई इसका तो जवाब नहीं है!

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  6. अपने बारे में अगर, खुद ही सोचें राम ।
    बेढब दुनिया क्या करे, मुँह ढांपे आराम ।

    ...वाह, वाह!...क्या खूब्ब कही!

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  7. आज की हिंसा की दुनिया में ,एक तो मिला अहिंसावादी
    सब प्यार से पुकारे उसको नाम है जिसका रविकर फैजाबादी....:-)
    शुभकामनाएँ!

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