भोजन-भट ज्यों बैठता, कमर-बंद को खोल |
लार घोंटने लग पड़े, हाथ फिराते ढोल ।।
पूडी-सब्जी आ गई, जब चटनी के साथ ।
हाथ दाहिने को जकड, थामे बाँया हाथ ।।
दोनों हाथों को उठा, ज्यों बोला जजमान ।
टूट पड़े वह शत्रु पर, जैसे युद्ध-स्थान ।।
हर वितरक धरता वहाँ, नो-इंट्री का टैक्स ।
मस्त माल चापा करे, भोजन भट्ट रिलैक्स ।।
चूहे कूदें क्यूँ कभी, हरदिन रहे मोटाय ।
बिना भूख के हर समय, चार गुना पा जाय ।।
ठूँस ठूँस के भर रहा, लेता नहीं डकार।
हिस्से चार डकार के, करे नहीं इनकार ।।
वहीँ पास के गाँव में, पसरा है अँधियार ।
इक पूरे परिवार को, गई भुखमरी मार ।।
अरबों बोरे सड़ गया, जहाँ खुले में अन्न ।
चार मरे हैं आज फिर, लाखों हैं आसन्न ।।
वहीँ पास के गाँव में, पसरा है अँधियार ।
ReplyDeleteइक पूरे परिवार को, गई भुखमरी मार ।।
अरबों बोरे सड़ गया, जहाँ खुले में अन्न ।
चार मरे हैं आज फिर, लाखों हैं आसन्न ।।
बहुत सार्थक दोहे है रविकर जी...
बधाई..
सादर.
अरबों बोरे सड़ गया, जहाँ खुले में अन्न ।
ReplyDeleteचार मरे हैं आज फिर, लाखों हैं आसन्न ।।
कैसी विडंबना है यह ?
अरबों बोरे सड़ गया, जहाँ खुले में अन्न ।
ReplyDeleteचार मरे हैं आज फिर, लाखों हैं आसन्न ।।
....किसको चिंता है..बहुत सार्थक प्रस्तुति...
कैसी विभीषिका है,कैसा अन्याय और मानवीय विन्यास का असंतुलित चेहरा , मर्म आहात कर गई ,पर साथक लेखन हेतु आभार|
ReplyDeleteवाह...बहुत सुन्दर, लाजवाब!
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
बहुत सुन्दर, लाजवाब!आभार
ReplyDeleteकहीं धूप कहीं छाँव..
ReplyDeletekatu satya :(
ReplyDeleteमत भेद न बने मन भेद - A post for all bloggers
कुरीतियों पर बढ़िया व्यंग्य .प्रबन्ध (राजनीतिक )के मुंह पे तमाचा मारा है आपने कसके .बधाई .
ReplyDeleteआपकी द्रुत टिपण्णी के लिए शुक्रिया .कृपया यहाँ भी पधारें -शनिवार, 28 अप्रैल 2012
ईश्वर खो गया है...!
http://veerubhai1947.blogspot.in/
आरोग्य की खिड़की
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महिलाओं में यौनानद शिखर की और ले जाने वाला G-spot मिला
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यही है कड़वी सच्चाई
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteलाजवाब