Friday, 27 April 2012

इक पूरे परिवार को, गई भुखमरी मार -

भोजन-भट ज्यों बैठता, कमर-बंद को खोल |
लार घोंटने लग पड़े, हाथ फिराते  ढोल ।।

पूडी-सब्जी आ गई, जब चटनी के साथ ।
हाथ दाहिने को जकड, थामे बाँया हाथ ।।

दोनों हाथों को उठा, ज्यों बोला जजमान ।
टूट पड़े वह शत्रु पर, जैसे युद्ध-स्थान ।।

हर वितरक धरता वहाँ, नो-इंट्री का टैक्स ।
मस्त माल चापा करे, भोजन भट्ट रिलैक्स ।।

 चूहे कूदें क्यूँ कभी, हरदिन रहे मोटाय ।
बिना भूख के हर समय, चार गुना पा जाय ।।

ठूँस ठूँस के भर रहा, लेता नहीं डकार।
हिस्से चार डकार के, करे नहीं इनकार ।।

वहीँ पास के गाँव में, पसरा है अँधियार ।
इक पूरे परिवार को, गई भुखमरी मार ।।

अरबों बोरे सड़ गया, जहाँ खुले में अन्न ।
चार मरे हैं आज फिर, लाखों हैं आसन्न ।।

11 comments:

  1. वहीँ पास के गाँव में, पसरा है अँधियार ।
    इक पूरे परिवार को, गई भुखमरी मार ।।

    अरबों बोरे सड़ गया, जहाँ खुले में अन्न ।
    चार मरे हैं आज फिर, लाखों हैं आसन्न ।।

    बहुत सार्थक दोहे है रविकर जी...
    बधाई..
    सादर.

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  2. अरबों बोरे सड़ गया, जहाँ खुले में अन्न ।
    चार मरे हैं आज फिर, लाखों हैं आसन्न ।।

    कैसी विडंबना है यह ?

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  3. अरबों बोरे सड़ गया, जहाँ खुले में अन्न ।
    चार मरे हैं आज फिर, लाखों हैं आसन्न ।।

    ....किसको चिंता है..बहुत सार्थक प्रस्तुति...

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  4. कैसी विभीषिका है,कैसा अन्याय और मानवीय विन्यास का असंतुलित चेहरा , मर्म आहात कर गई ,पर साथक लेखन हेतु आभार|

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  5. वाह...बहुत सुन्दर, लाजवाब!
    आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  6. बहुत सुन्दर, लाजवाब!आभार

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  7. कहीं धूप कहीं छाँव..

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  8. कुरीतियों पर बढ़िया व्यंग्य .प्रबन्ध (राजनीतिक )के मुंह पे तमाचा मारा है आपने कसके .बधाई .
    आपकी द्रुत टिपण्णी के लिए शुक्रिया .कृपया यहाँ भी पधारें -शनिवार, 28 अप्रैल 2012

    ईश्वर खो गया है...!

    http://veerubhai1947.blogspot.in/
    आरोग्य की खिड़की
    http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/04/blog-post_992.html

    महिलाओं में यौनानद शिखर की और ले जाने वाला G-spot मिला
    http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/

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  9. यही है कड़वी सच्चाई

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  10. बहुत सुन्दर
    लाजवाब

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