Sunday, 22 April 2012

खम्भें दरकें तीन, बोझ चौथे पर भारी-

खबर खभरना बन्द कर, ना कर खरभर मित्र ।
खरी खरी ख़बरें खुलें, मत कर चित्र-विचित्र ।

मत कर चित्र-विचित्र, समझ ले जिम्मेदारी ।
खम्भें दरकें तीन, बोझ चौथे पर भारी ।

सकारात्मक असर, पड़े दुनिया पर वरना ।
तुझपर सारा दोष,  करे जो खबर खभरना ।।
खबर खभरना  = मिलावटी खबर  

रविकर की रसीली जलेबियाँ

"कुछ कहना है"

दिनेश की टिप्पणी - आपका लिंक

11 comments:

  1. कोमल भाव,समीचीन सुन्दर कत्थ्य बधाईयाँ जी /

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  2. खब,र खबर रहे खभरना न बने । चौथे खंबे के हर सदस्य की जिम्मेवारी है यह ।

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  3. बोझ बड़ा भारी आया रे।

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  4. बढ़िया रचना!
    पृथ्वी दिवस की शुभकामनाएँ!

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  5. kin shabdo me tarif karoon....shabd jo kam pad gaye

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  6. अतिसुन्दर और चुटीली !

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  7. बहुत बढ़िया

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  8. अनुप्रास की छटा देखते बनती है।

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  9. मत कर चित्र-विचित्र, समझ ले जिम्मेदारी ।
    खम्भें दरकें तीन, बोझ चौथे पर भारी ।भाई साहब सभी आंचलिक शदों के अर्थ दिया कीजे ,पोस्ट और उपयोगी होगी .मसलन 'खरभर 'और 'खबरना '
    कृपया यहाँ भी नजर डालें -
    टी वी विज्ञापनों का माया जाल और पीने की ललक
    http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/04/blog-post_6907.html

    कोणार्क सम्पूर्ण चिकित्सा तंत्र -- भाग चार .

    शुक्रिया आपकी द्रुत और उत्साहवर्धक टिप्पणियों का .

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  10. वाह क्या बात है बहुत बढिया

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  11. रवि जी
    इशारे से दायित्व निर्वहन समझाने के लिए इन दोहों की जितनी प्रशंसा की जाये उतनी कम.
    घुमते इस काल चक्र से

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