खिले बगीचे फूल संग, अनचाहे पतवार ।
जैसे घर-संसार में, लें आकार विकार ।
लें विकार आकार , उखाड़ो जड़ से सारे ।
किन्तु जहर मत डाल, असर प्यारों पर पारे ।
है जीवन की सीख, नीच जब रहे लंगीचे ।
है जीवन की सीख, नीच जब रहे लंगीचे ।
तब सु-मनों का मूल्य, समझते खिले बगीचे ।।
सार्थक सन्देश देती सुन्दर रचना...
ReplyDeleteसु मन जहाँ भी रहेंगे, आनन्द रहेगा।
ReplyDeletesuman man harshit sda rahe,jivan surbhit sda rhe.
ReplyDeletebehad sundar post bdhai,sir,
-- रविकर जी...आप मेरे ब्लॉग तक पहुंचे..रचना पड़ी...पसंद की..सराहना की....बहुत बहुत धन्यवाद........और आपने जो...लिखा है....बहुत ही सुंदर ...इसलिए..आपको..धन्यवाद किये बिना रह नही सकी........आपके ब्लॉग तक पहुंची.....और वहां ये पड़ा "" वर्णों का आंटा गूँथ-गूँथ, शब्दों की टिकिया गढ़ता हूँ| समय-अग्नि में दहकाकर, मद्धिम-मद्धिम तलता हूँ|| चढ़ा चासनी भावों की, ये शब्द डुबाता जाता हूँ | गरी-चिरोंजी अलंकार से, फिर क्रम वार सजाता हूँ | ""...........वाह ...बस यही निकला...अदभुद......आपकी रचनायों की तरहा......
ReplyDeleteआभार .......