Sunday, 1 April 2012

सपना मिडिल क्लास, देखता कैसे कैसे

 
इ'स्टेटस सिम्बल बना, नवधनाढ्य का एक । 

मस्त दुकानें चल रहीं, बाबा बैठ अनेक । 



बाबा बैठ अनेक, दलाली करते आधे ।
फँसते ग्राहक नए, सभी को बाबा साधे ।

सपना मिडिल क्लास, देखता कैसे कैसे  ।
चाहत बने अमीर, लुटा के अपने पैसे ।। 

5 comments:

  1. :-)

    बढ़िया...........

    सादर.

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  2. aadeneey ravikar jee..aapki rachnayein to manji hui hoti hain..aapke samast rachnaon ka rasaswadan main karta hee rahta hoon..lekin aaj mere blog par aapke commets ne mujhe behad utsahit kiya..1 april ki baat padhkar bhee anand aaya..aap badon ka asirwad ham jaise nausikhiyon ko hausla dega to ham log kuch behtar karne ke satat koshis karte rahenge..aap eun hee sneh dete rahein.margdarshan karte rahein..sadar pranam ke sath

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    1. अभी अभी डाक्टर हुई, गप्पे गाफिल संग |
      रचनाओं में भी दिखे, उच्च कोटि के रंग |

      उच्च कोटि के रंग, शायरी मस्त तराशें |
      गजल देख के दंग, भावना गोरी फांसे |

      वैसे गाफिल गुरु, करें दिल से परशंसा |
      मिले आपका स्नेह, यही रविकर की मंशा |

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  3. रविकर जी सपने तो देख ही लेने दो लूट न पायें तो अपना ही गंवा कर .....सुन्दर बाबा की दूकान तो चल निकली
    जय श्री राधे
    भ्रमर 5

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  4. सब सपनों को बेच रहे हैं।

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