veerubhai at ram ram bhai
पर मेरी टिप्पणी
अधिकारों के प्रति रहे,
मुखरित और सचेत |
पिता, पुत्र पति में बही
व्यर्थ समय की रेत |
व्यर्थ समय की रेत
बराबर हक़ पायी है |
आजादी के गीत,
जोर से अब गायी है |
चाल-ढाल ड्रेस वाद,
थोपिए अब न इनपर |
माँ क्या जाने आज,
नारियां चलती तनकर ||
सब आगे बढ़ीं जा रहीं हैं।
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