श्री संतोष जी त्रिवेदी का आभार
मिली प्रेरणा
बैशाख और मेघा / माघ
मेघा को ताका करे, नाश-पिटा बैसाख ।
करे भांगड़ा तर-बतर, बट्टा लागे शाख ।
बट्टा लागे शाख, मुटाता जाय दुबारा ।
पर नन्दन वैशाख, नहीं मेघा को प्यारा ।
मेघा ठेंग दिखाय, चिढाती कहती घोंघा ।
ठंडी मस्त बयार, झिड़कती उसको मेघा ।।
चित्रा (चैत्र)
चित्रा के चर्चा चले, घर-आँगन मन हाट ।
ज्वार जवानी कनक सी, रही ध्यान है बाँट ।
रही ध्यान है बाँट, चूड़ियाँ साड़ी कंगन ।
जोह रही है बाट, लाट होंगे मम साजन ।
फगुनाहटी सुरूर, त्याग अब कहती मित्रा ।
विदा करा चल भोर, ताकती माती-चित्रा ।।
आश्विन और कार्तिक
चूमा-चाटी कर रहे, उत्सव में पगलान ।
डेटिंग-बोटिंग में पड़े, रेस्टोरेंट- उद्यान ।
रेस्टोरेंट- उद्यान, हुवे खुब कसमे-वादे ।
पूजा का माहौल, प्रेम रस भक्ति मिला दे ।
नव-दुर्गा आगमन, दिवाली जोड़ा घूमा ।
पा लक्ष्मी वरदान, ख़ुशी से माथा चूमा ।।
जय हो, मौसम भी आपकी कविता में कैद..
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