(१)
अश्वस्थामा हस्ति की, हस्ती देत मिटाय ।
अश्वस्थामा हस्ति की, हस्ती देत मिटाय ।
जीव-जंतु मरते गए, शामिल धर्म चुपाय ।
शामिल धर्म चुपाय, द्रोण की हत्या होती ।
यह युक्ति-निर्दोष, बीज हत्या की बोती ।
पाँचो पांडव पुत्र, कटे मिटता कुल-नामा ।
मणि विहीन ले घाव, भटकता अश्वस्थामा ।
(२)
पर्यावरण परिस्थिती, दे झूठों का साथ ।
चिरंजीव की मृत्यु सुन, घूम द्रोण का माथ ।
घूम द्रोण का माथ, मरे ना अश्वस्थामा ।
(२)
चिरंजीव की मृत्यु सुन, घूम द्रोण का माथ ।
घूम द्रोण का माथ, मरे ना अश्वस्थामा ।
पर करते विश्वास, बिधाता होते बामा ।
ऐसे शाश्वत सत्य, हारता जाए हरदम ।
करके कारक पक्ष, झूठ करता है बम-बम ।।
मणिविहीन अश्वथामा सदियों से यूँ भटक रहा है।
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