विद्वानों से डर लगता है , उनकी बात समझना मुश्किल ।
आशु-कवि कह देते पहले, भटकाते फिर पंडित बे-दिल ।
अच्छा है सतसंग मूर्ख का, बन्दर तो नकुना ही काटे -
नहीं चढ़ाता चने झाड पर, हंसकर बोझिल पल भी बांटे ।
सदा जरुरत पर सुनता है, उल्लू गधा कहो या रविकर
मीन-मेख न कभी निकाले, आज्ञा-पालन को वह तत्पर ।
प्रकृति-प्रदत्त सभी औषधि में, हँसना सबसे बड़ी दवाई ।
अपने पर हँसना जो सीखे, रविकर देता उसे बधाई ।।
विद्वानों से डर लगता है , उनकी बात समझना मुश्किल ।
ReplyDelete@ विद्वानों की लिस्ट बताओ, मैं भी उनसे दूर रहूँगा.
जो ना बात समझ में आये, वमन शौच सब करवा दूँगा.
आशु-कवि कह देते पहले, भटकाते फिर पंडित बे-दिल ।
ReplyDelete@ जो भी काम करोगे भैया, पदवी वही जायेगी मिल
आशु कवित्व-द्वार पर लिख लो, पंडित गुप्ता झिलमिल-झिलमिल.
अच्छा है सतसंग मूर्ख का, बन्दर तो नकुना ही काटे -
ReplyDeleteनहीं चढ़ाता चने झाड पर, हंसकर बोझिल पल भी बांटे ।
@ मूर्खों के सत्संग मध्य में, मंडित होना नहीं सरल है.
चने झाड़ पर ना चढ़ पाते, जो बकने में सीताफल हैं.
...... [बकने = वक्तृत्व] [सीताफल मतलब भारी]
सदा जरुरत पर सुनता है, उल्लू गधा कहो या रविकर
ReplyDeleteमीन-मेख न कभी निकाले, आज्ञा-पालन को वह तत्पर ।
@ इन्हीं गुणों पर रीझे सारे, इसीलिए प्यारा रविकर है.
सबको तोले एक तुला में, ऐसा बनिया ही हितकर है.
प्रकृति-प्रदत्त सभी औषधि में, हँसना सबसे बड़ी दवाई ।
ReplyDeleteअपने पर हँसना जो सीखे, रविकर देता उसे बधाई ।।
@ श्रेष्ठ कला है 'खुद के द्वारा' कड़वी-से-कड़वी कठिनाई.
सुलझा देना बिना हिचक के, रविकर जैसा नहीं है भाई.
स्वयं पर हँसने का गुण आना चाहिये।
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