Monday 2 April 2012

सदा जरुरत पर सुनता है, उल्लू गधा कहो या रविकर

विद्वानों से डर लगता है , उनकी बात समझना मुश्किल ।
आशु-कवि कह देते पहले, भटकाते फिर पंडित बे-दिल ।

 अच्छा है सतसंग मूर्ख का, बन्दर तो  नकुना ही काटे -
नहीं चढ़ाता चने झाड पर, हंसकर बोझिल पल भी बांटे ।

सदा जरुरत पर सुनता है, उल्लू गधा कहो या रविकर  
मीन-मेख न कभी निकाले, आज्ञा-पालन को वह तत्पर ।

प्रकृति-प्रदत्त सभी औषधि में, हँसना सबसे बड़ी दवाई ।
अपने पर हँसना जो सीखे, रविकर देता उसे बधाई ।। 

6 comments:

  1. विद्वानों से डर लगता है , उनकी बात समझना मुश्किल ।
    @ विद्वानों की लिस्ट बताओ, मैं भी उनसे दूर रहूँगा.
    जो ना बात समझ में आये, वमन शौच सब करवा दूँगा.

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  2. आशु-कवि कह देते पहले, भटकाते फिर पंडित बे-दिल ।
    @ जो भी काम करोगे भैया, पदवी वही जायेगी मिल
    आशु कवित्व-द्वार पर लिख लो, पंडित गुप्ता झिलमिल-झिलमिल.

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  3. अच्छा है सतसंग मूर्ख का, बन्दर तो नकुना ही काटे -
    नहीं चढ़ाता चने झाड पर, हंसकर बोझिल पल भी बांटे ।
    @ मूर्खों के सत्संग मध्य में, मंडित होना नहीं सरल है.
    चने झाड़ पर ना चढ़ पाते, जो बकने में सीताफल हैं.

    ...... [बकने = वक्तृत्व] [सीताफल मतलब भारी]

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  4. सदा जरुरत पर सुनता है, उल्लू गधा कहो या रविकर
    मीन-मेख न कभी निकाले, आज्ञा-पालन को वह तत्पर ।
    @ इन्हीं गुणों पर रीझे सारे, इसीलिए प्यारा रविकर है.
    सबको तोले एक तुला में, ऐसा बनिया ही हितकर है.

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  5. प्रकृति-प्रदत्त सभी औषधि में, हँसना सबसे बड़ी दवाई ।
    अपने पर हँसना जो सीखे, रविकर देता उसे बधाई ।।
    @ श्रेष्ठ कला है 'खुद के द्वारा' कड़वी-से-कड़वी कठिनाई.
    सुलझा देना बिना हिचक के, रविकर जैसा नहीं है भाई.

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  6. स्वयं पर हँसने का गुण आना चाहिये।

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