पंगत हित पत्तल पड़े, रहे परोस *सुआर |किन्तु सुअर घुस कर करे, भोज-भाज बेकार |भोज-भाज बेकार, कहे बकवास बनाया |लालू यहाँ रसीद, वहाँ अन्दर करवाया |न्यायोचित यह कर्म, राज की बदले रंगत |पर पी एम् का मर्म, भूख से व्याकुल पंगत ||चेहरा उनका देखो ,सगरी उड़ गई रंगत .
पंगत हित पत्तल पड़े, रहे परोस *सुआर |
ReplyDeleteकिन्तु सुअर घुस कर करे, भोज-भाज बेकार |
भोज-भाज बेकार, कहे बकवास बनाया |
लालू यहाँ रसीद, वहाँ अन्दर करवाया |
न्यायोचित यह कर्म, राज की बदले रंगत |
पर पी एम् का मर्म, भूख से व्याकुल पंगत ||
चेहरा उनका देखो ,
सगरी उड़ गई रंगत .