Saturday, 26 October 2013

नहीं आ रहा बाज, बजाये मारू बाजा-

बाजारू संवेदना, दिया दनादन दाग |
जिसको भी देखो यहाँ, उगल रहा है आग |

उगल रहा है आग, जाग अब जनता जाये  |
लेकर मत में भाग, जोर से उन्हें भगाये  |

छद्म रूप में धर्म, आज निरपेक्ष विराजा |
नहीं आ रहा बाज, बजाये मारू बाजा || 

4 comments:

  1. बहुत ही उम्दा प्रस्तुति छल छद्म ही का बोलबाला है सर जी

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  2. आप की ये सुंदर रचना आने वाले सौमवार यानी 28/10/2013 को नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है... आप भी इस हलचल में सादर आमंत्रित है...
    सूचनार्थ।

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  3. इस आग को कोई बुझाना नहीं चाहता अगली मई तक ...

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  4. बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति......

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