दुर्मिल सवैया
पुरबी उर-*उंचन खोल गई, खुट खाट खड़ी मन खिन्न हुआ |
कुछ मत्कुण मच्छर काट रहे तन रेंगत जूँ इक कान छुआ |
भडकावत रेंग गया जब ये दिल मांगत मोर सदैव मुआ |
फिर नारि सुलोचन ब्याह लियो शुभचिंतक मांगत किन्तु दुआ |
उंचन=खटिया कसने वाली रस्सी , उरदावन
मत्कुण=खटमल
भाषा का चमत्कार..
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