(1)
दंगे के प्रतिफल वहाँ, गिना गए युवराज |
दंगे के प्रतिफल वहाँ, गिना गए युवराज |
होती है लेकिन यहाँ, राँची में क्यूँ खाज |
राँची में क्यूँ खाज, नक्सली आतंकी हैं |
ये आते नहिं बाज, हजारों जानें ली हैं |
अब सत्ता सरकार, हुवे हैं फिर से नंगे |
पटना गया अबोध, हुवे कब रविकर दंगे ||
(2)
हुक्कू हूँ करने लगे, अब तो यहाँ सियार |
कब से जंगल-राज में, सब से शान्त बिहार |
सब से शान्त बिहार, सुरक्षित रहा ठिकाना |
किन्तु लगाया दाग, दगा दे रहा सयाना |
रहा पटाखे दाग, पिसे घुन पिसता गेहूँ |
सत्ता अब तो जाग, बंद कर यह हुक्कू हूँ -
(2)
हुक्कू हूँ करने लगे, अब तो यहाँ सियार |
कब से जंगल-राज में, सब से शान्त बिहार |
सब से शान्त बिहार, सुरक्षित रहा ठिकाना |
किन्तु लगाया दाग, दगा दे रहा सयाना |
रहा पटाखे दाग, पिसे घुन पिसता गेहूँ |
सत्ता अब तो जाग, बंद कर यह हुक्कू हूँ -
अब विद्रोह जरूरी है !!
ReplyDeleteमानव रूपी, कुत्तों से
रात में जगे,भेड़ियों से
राजनीति के दल्लों से
खादी की, पोशाकों से
बदन के भूखे मालिक से, सम्पादकी तराजू से !
अब संघर्ष जरूरी है !
बहुत सुंदर.
ReplyDeleteइस पोस्ट की चर्चा, बृहस्पतिवार, दिनांक :-31/10/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक -37 पर.
ReplyDeleteआप भी पधारें, सादर ....
बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteनई पोस्ट हम-तुम अकेले
sundar pratuti
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