Tuesday 29 October 2013

होती है लेकिन यहाँ, राँची में क्यूँ खाज-

(1)
दंगे के प्रतिफल वहाँ, गिना गए युवराज |
होती है लेकिन यहाँ, राँची में क्यूँ खाज |

राँची में क्यूँ खाज, नक्सली आतंकी हैं |
ये आते नहिं बाज, हजारों जानें ली हैं |

अब सत्ता सरकार, हुवे हैं फिर से नंगे |
पटना गया अबोध, हुवे कब रविकर दंगे ||
(2)
हुक्कू हूँ करने लगे, अब तो यहाँ सियार |
कब से जंगल-राज में, सब से शान्त बिहार |

सब से शान्त बिहार, सुरक्षित रहा ठिकाना |
किन्तु लगाया दाग,  दगा दे रहा सयाना |

रहा पटाखे दाग, पिसे घुन पिसता गेहूँ |
सत्ता अब तो जाग, बंद कर यह हुक्कू हूँ -

5 comments:

  1. अब विद्रोह जरूरी है !!

    मानव रूपी, कुत्तों से
    रात में जगे,भेड़ियों से
    राजनीति के दल्लों से
    खादी की, पोशाकों से

    बदन के भूखे मालिक से, सम्पादकी तराजू से !
    अब संघर्ष जरूरी है !

    ReplyDelete
  2. इस पोस्ट की चर्चा, बृहस्पतिवार, दिनांक :-31/10/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक -37 पर.
    आप भी पधारें, सादर ....

    ReplyDelete