Sunday, 6 October 2013
बस्ती कई बसाय, खेत उपजाऊ करती -
सरिता का उद्गम कहाँ, कहाँ नहीं चल जाय |
करे लोकहित अनवरत, बस्ती कई बसाय |
बस्ती कई बसाय, खेत उपजाऊ करती |
नाले मिलते आय, किन्तु गन्दगी अखरती |
रखते गन्दी नियत, दुष्ट फैले हैं परित: |
सह सकती नहिं और, मिले सागर में सरिता-
4 comments:
Jai bhardwaj
6 October 2013 at 23:29
जीवनदायिनी नदी के असह्य दुःख का सहज चित्रण। आभार।
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सुशील कुमार जोशी
7 October 2013 at 07:08
वाह !
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ताऊ रामपुरिया
7 October 2013 at 08:22
बहुत सुंदर.
रामराम.
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Anita
9 October 2013 at 05:58
सही कहा है
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जीवनदायिनी नदी के असह्य दुःख का सहज चित्रण। आभार।
ReplyDeleteवाह !
ReplyDeleteबहुत सुंदर.
ReplyDeleteरामराम.
सही कहा है
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