Sunday, 6 October 2013

बस्ती कई बसाय, खेत उपजाऊ करती -

सरिता का उद्गम कहाँ, कहाँ नहीं चल जाय |
करे लोकहित अनवरत, बस्ती कई बसाय |

बस्ती कई बसाय, खेत उपजाऊ करती |
नाले मिलते आय, किन्तु गन्दगी अखरती |

रखते गन्दी नियत, दुष्ट फैले हैं परित: |
सह सकती नहिं और, मिले सागर में सरिता-

4 comments:

  1. जीवनदायिनी नदी के असह्य दुःख का सहज चित्रण। आभार।

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  2. बहुत सुंदर.

    रामराम.

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  3. सही कहा है

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