Tuesday 3 December 2013

रविकर करता गौर, दाहिने रख पत्नी को-

(1)
पत्नी को भी छूट हो, अलग बिताये पाख |
प्रेमी प्यारा तड़पता, लगी दाँव पर साख |

लगी दाँव पर साख, दाख अब तो नहिं खट्टे |
राम राम इस पाख, श्याम फिर बोले पट्टे |

उपपत्नी का दौर, भाग्य से टूटो छींको |
रविकर करता गौर, दाहिने रख पत्नी को || 

(2)
बामांगी वह थी कभी, अभी दाहिनी ओर | 
दुगुनी दिल की कोठरी, खाली बायाँ छोर |

खाली बायाँ छोर, ख़ुशी का मौसम आया |
भेजा कल पैगाम, उसे भी पास बुलाया |

लेकिन पीटे माथ, हुआ रविकर एकांगी |
घंटा घंटा बाँट, करे टोटे बामांगी ||
पीड़ित आये सामने, होता है गर रेप |
भंग नहीं कौमार्य हो, क्या लज्जा क्या झेंप |
क्या लज्जा क्या झेंप, छेड़ना नहीं छोड़ता |
पुरुष गया है *खेप, चला विश्वास तोड़ता |
रविकर करनी भोग, कर्म कर बैठा घृणित |

डूबे पुरुष समाज, चीखते हर दिन पीड़ित ||

4 comments: