न पढ़ें कविता समझकर
झेल अकेले खेल प्रभू के,
रेल ले गई अपने सारे ।
बेटा तो परदेश कमाता,
पहले शेखी सदा बघारे ।।
होली में तनु-मनु का आना,
झाँसी-झाँसा लक-लखनौआ
माँ को अपने साथ ले गई,
भटके तन-मन द्वारे द्वारे ।।
चलो एकला, आया था जस,
सबकी नैया लगी किनारे ।
सपने जीते बना कैरियर,
रविकर तनहा हारे हारे ।।
यहाँ पूरा खेल अभी जीवन का तूने कहाँ है खेला ,चल अकेला चल अकेला ,तेरा मेला पीछे छूटा राही चल अकेला .. हज़ारों मील लम्बे रस्ते तुझको बुलाते ,यहाँ दुखड़े सहने के वास्ते तुझको बुलाते ,यहाँ पूरा खेल अभी जीवन का तूने कहाँ है खेला ,चल अकेला चल अकेला चल अकेला ,तेरा मेला पीछे छूटा राही चल अकेला .
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteछोड़ निराशा पालें आशा
ReplyDeleteराह मनोहर सांझ सकारे
तन्हाई में साथ प्रभु का
होता है आभास सखा रे
naye prakar ki.....achchi lagi.
ReplyDeleteसबका एक साथ मिल बैठना तो बनता है होली में..
ReplyDeleteवाह बेहतरीन !!!!
ReplyDelete...........अच्छी प्रस्तुति!