उत्तराखंड की परिस्थिति पर
शास्त्री जी के सटीक दोहे
और
मेरी कुंडली
सत्य कटुक कटु सत्य हो, गुरुवर कहे धड़ाक।
दल-दल में दलकन बढ़ी, दल-दलपति दस ताक।
दल-दलपति दस ताक, जमी दलदार मलाई ।
सभी घुसेड़ें नाक, लगे है पूरी खाई ।
खाई कुआँ बराय, करो मैया ना खट्टा ।
बैठे भाजप चील, मार न जांय झपट्टा ।।
"दोहे-दल-दल में सरकार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
गुटबन्दी में फँस गया, सत्ता का परिवेश।१।
बिकने को तैयार हैं, प्रत्याशी आजाद।
लोकतन्त्र का हो रहा, रूप यहाँ बरबाद।२।
जोड़-तोड़ होने लगी, खिसक रहा आधार।
जनपथ के आदेश की, हुई करारी हार।३।
चलने से पहले फँसी, दल-दल में सरकार।
दर्जन भर बीमार हैं, लेकिन एक अनार।४।
सब बिकाऊ है चाहे नेता हो नेत्री। संतरी हो या मन्त्री। जय हिन्द जय भारत मेरा महान क्योंकि यहाँ सौ में निन्यानवे बेईमान।
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया!
मजेदार और सार्थक पोस्ट है सर आपकी | धन्यवाद की आप मेरे ब्लॉग पर आये मेरा उत्साह वर्धन किया |
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