Thursday 23 June 2011

ZEAL की पोस्ट पर जोंक

फेंक देते एक पत्थर
शान्त से ठहरे जलधि में-
आराम से फिर जल-तरंगों का---
मजा लेते रहें |
मेंढक-मछलियाँ-जोंक-घोंघे
आ गए ऊपर सतह पर---
आस्था पर फिर जलधि  के
व्यक्तव्य वे  देते रहें ||
अस्तित्व की अपनी लड़ाई
जीव खुद लड़ते  यहाँ --
मझधार से तट की तरफ
वे नाव-निज  खेते रहे |
चाँद-सूरज-आसमान-
तारे-धरा पर आस्था
विश्वास की झोली  उठाये
जीवन नया सेते रहें || 
 *         *          *           * 
मरने का डर |
अब कम हो गया है |
बस  जरा सा आगे--
ये गम हो गया है ||
*         *          *            *
दु:शासन के --
उड़ेंगे परखच्चे --
मरेंगे फिर--
धृत-राष्ट्र के बच्चे ||
*          *           *           *
तुमने ही तो --
दो बरस पहले 
भेजी थी 
अनाम पाती |
संभाल कर 
रखनी थी
वो थाती | 
पर मैं तो था
दीवाना उनका |
कल, हो गया है 
निकाह जिनका--






 

4 comments:

  1. आपकी ही तर्ज में... आपके लेखन से प्रभावित होकर...
    __________________

    रविकर जी का लेखन पैना.
    शब्दों की ले करके सैना.
    तारकनाथ निशाचर दल पर
    टूट पड़े, भागी तब रैना.

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  2. @ प्रतुल वशिष्ठ said...

    आपकी ही तर्ज में... आपके लेखन से प्रभावित होकर...

    (आनन्दमयी हँसी)


    @ सदा said...

    बेहतरीन ।

    सदा आभार आपका ||

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