Friday, 28 September 2012

सीख रहा हूँ-


चलो उधर अब चल दो ।
रस्ता जरा  बदल दो ।।

 दुनिया के मसलों का 
हिन्दुस्तानी हल दो ।।

 होली होने को हो ली 
रंग तो फिर भी मल दो ।

 दिखला दी बत्तीसी 
दाढ़ तो अक्कल दो ।।

पित्तर भूखा प्यासा 
थोडा-थोडा जल दो ।।

नाचें जो  वैशाखी-
इतना अब संबल दो ।।

जप-तप कौन करेगा 
हमको सीधा फल दो।।  

सदियां दुःख में बीतीं
एक ख़ुशी का पल दो।

11 comments:

  1. दुनिया के मसलों का
    हिन्दुस्तानी हल दो ।।

    कोई हल नहीं मिलने वाला .... खुशी भी स्वयं ही पानी होगी ... कोई नहीं देने वाला ।

    बढ़िया रचना

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  2. शानदार पोस्ट है ,आपके साथ हम भी प्रयासरत हैं |

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  3. बहुत अच्छी प्रस्तुति!
    इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (29-09-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  4. वाह! बेहतरीन! लाज़वाब!

    रोज दूसरों के ब्लॉग में ढेरों कमेंट लिखते-लिखते कहीं आपकी यह सुंदर पहचान गुम तो नहीं हो रही!

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  5. देवेन्द्र पांडे जी ने मेरे मुंह की बात छीन ली .छोटी बहर की

    महा गज़ल है यह

    दुनिया के मसलों का
    हिन्दुस्तानी हल दो ।।

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  6. हिन्दुस्तानी मन को ,

    भारत का ही मन दो ,

    हिन्दुस्तानी वर दो

    हिन्दुस्तानी बल दो

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  7. अब उनको मत छलने दो ,

    अपनों की चलने दो .

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  8. दुनिया के मसलों का
    हिन्दुस्तानी हल दो ।।

    फेल हो जाना है मतलब !

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  9. waah...sidhi bat...binalaglpet ke...

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  10. जप-तप कौन करेगा
    हमको सीधा फल दो।।
    अच्छी लगी ये बेबाकी | सुंदर प्रस्तुति |
    इस समूहिक ब्लॉग में पधारें और इस से जुड़ें |
    काव्य का संसार

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