Thursday, 20 September 2012

लगा चून, परचून, मारता डंडी रविकर -

पासन्गे से परेशां, तौले भाजी पाव ।
इक छटाक लेता चुरा, फिर भी नहीं अघाव ।

फिर भी नहीं अघाव, मिलावट करती मण्डी  ।
लगा चून, परचून, मारता रविकर डंडी

 कर के भारत बंद, भगा परदेशी नंगे ।
लेते सारे पक्ष, हटा अब तो पासन्गे ।।

3 comments:

  1. बहुत बढ़िया व्यंगात्मक सामयिक कुंडली बधाई रविकर भाई

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  2. नदार व्यंग्य ,वर्तमान परिवेश में सजी पोस्ट ,बधाई

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  3. वर्तमान परिवेश पर बेहद सटीक चुटीली ब्यंगात्मक कुंडली ...हार्दिक बधाईयां रविकर जी

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