Thursday 23 June 2011

कोख नोचते कुक्कुर-चीते -

           शोक-वाटिका की ऐ सीते !
           राम-लखन के तरकश रीते ||
जगह-जगह जंगल-ज्वाला , उठे धुआँ काला-काला|
प्रर्यावरण - प्रदूषण  ने, खर - दूषण  प्रतिपल  पाला || 
          कुम्भकरण-रावण जीते - 
          राम-लखन के तरकश रीते||
नदियों में मिलते नाले, मानव-मळ मुर्दे डाले |
'विकसित' की आपाधापी, बुद्धि पर लगते ताले||
          भाष्य बांचते भगवत-गीते -
         राम-लखन के तरकश रीते||
पनपे हरण - मरण  उद्योग, योग - भोग - संयोग - रोग |
काम-क्रोध-मद-लोभ समेटे, भव-सागर में भटके लोग ||
          मनु-नौका में लगा पलीते - 
         राम-लखन के तरकश रीते||
राग - द्वेष - ईर्ष्या  फैले,  हो  रहे  आज  रिश्ते  मैले |
पशुता भी चिल्लाये-चीखे, मानवता का दिल दहले ||
         रक्त-बीज का रक्त न पीते -
         राम-लखन के तरकश रीते||
राह - राह  'रविकर' रमता, मरी - मरी मिलती ममता |
जगह-जगह जल्लाद जुनूनी, भ्रूण चूर्ण कर न थमता ||
         कोख नोचते कुक्कुर-चीते - 
        राम-लखन के तरकश रीते ||
 &          &          &          &
 "भारत के भावी प्रधानमन्त्री"  ब्लॉग पर मेरी टिप्पणी

युद्ध  हो  या  बाजार
फूटते-दगते बम में भी |
मौत की मौजूदगी और
निकलते दम में भी ||
गलते ग्लेशियर और
जलते मौसम में भी ||
हृदय-पटल पर छपती फोटो
ख़ुशी में और गम में भी  ||


जरुर देंखें ये खून के कतरे --

खून के वे आखिरी कतरे चुए

12 जुलाई 2011 को 25 वाँ मुर्गा कटेगा

4 comments:

  1. अत्यंत सुन्दर, सार्थक कविता...पर्यावरण व मानव अनाचरण के विष-दन्त को उजागर करती हुई....बधाई..

    ReplyDelete
  2. आभार डाक्टर साहब ||

    ReplyDelete
  3. पर्यावरण के साथ मानव के खिलवाड़ को उकेरती बहुत सुन्दर सशक्त प्रस्तुति..

    ReplyDelete