Tuesday 20 November 2012

पी रविकर का रक्त, करे बेमतलब हुल्लड़-


फैलाए आँखे कुटिल, बाबा से कर भेंट
सदा पिनक में आलसी, लेता सर्प लपेट ।

लेता सर्प लपेट, समझता खुद को औघड़
पी रविकर का रक्त, करे बेमतलब हुल्लड़

कातिल सनकी मूढ़, पहुँचता बिना बुलाये ।
दुराचार नित करे, धर्म का भ्रम फैलाए ।



 तीखी मिर्ची असम की, खाय रहा पंजाब ।
रविकर यूँ मत मुंह लगा, ज्वलनशील तेज़ाब ।
ज्वलनशील तेज़ाब, तनिक भी गर चख लेगा ।
सी सी सू सू आह, गुलगुला गुड़ अखरेगा ।
जले सवेरे तलक, देहरी रग रग चीखी । 
बवासीर हो जाय, फिरा मुँह मिर्ची तीखी ।।
मिर्ची क्यों होती है इतनी तीखी?

10 comments:

  1. bahut hi shaskt prastuti कातिल सनकी मूढ़, पहुँचता बिना बुलाये ।
    दुराचार नित करे, धर्म का भ्रम फैलाए ।

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  2. 'sick-u-la-er' ka jispe, khoob chadhi tarang....
    nij-dharm ka up-has kar, nit sajaye manch..


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    1. धर्म का अर्थ न जानते
      सजाएं सेकुलर चर्चाएँ
      निज धर्म को बुरा कहें
      अरबी ढपली बजाएं

      रोज बजाएं ढपलियाँ
      हंसी सज्जनों की उड़ायें
      कभी नारियों के नाम की
      तुकबन्दियाँ बनाएं ..

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    2. आदरेया ||
      एक रचना पर आप तोहमत लगा दिए-
      सैकड़ों हैं, जरा पढ़ते तो सही ||

      कितना पढ़ा है आपने मुझको-
      शायद मुलाकात यह पहली रही ||

      सादर -

      ललित सज्जन लगा आश्चर्य है-उनकी टिप्पणी शायद नहीं पढ़ी है आपने-दूसरी टिप्पणी तो कत्तई नहीं

      मैंने न ही संजय जी को कुछ कहा है और न ही गिरिजेश जी को -यह बात कई बार कह चुका हूँ-मुझे नहीं लगता इस मसले पर उन्हें कोई शिकायत है मुझसे-

      मेरा आलेख दुबारा पढ़ लें
      सादर

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    3. आपका शिष्य बनना चाहता हूँ
      अब आप ही कुछ धर्म सिखाएं -

      निज धर्म को कहाँ बुरा कहा-
      ऐसी कोई जगह बताएं -

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  3. 1. @ ललित जी - उनको को मैं जानती नहीं - वे एक ब्लॉग पाठक हैं, जिनसे मेरा कोई परिचय नहीं है - उन्होंने शायद मेरे ब्लॉग पर कभी विजिट नहीं किया होगा । हाँ आदरणीय गिरिजेश जी के ब्लॉग पर उनकी टिप्पणियां पढ़ती रही हूँ । तो उनके विषय में मैं कुछ भी जानती नहीं हूँ । हाँ - उनकी टिप्पणियों की भाषा मुझे भी ठीक नहीं लगी, यह बात मैंने वहां चर्चामंच पर भी कही । तो आप उन्हें "छद्म" या "क्षुद्र" कहेंगे ? नयी जाती व्यवस्था आप लोग बना रहे हैं ?

    2. आदरणीय संजय जी और आदरणीय गिरिजेश जी को आप सभी ने वहां अनेक अपशब्द कहे हैं - और एक भी क्षमा निवेदन नहीं है वहां ।
    ---"कुटिल" "संकीर्ण" "संकुचित" ... पता नहीं और भी कई शब्द थे वहां ।
    यहाँ भी आप लिख रहे हैं :
    "फैलाए आँखे कुटिल, बाबा से कर भेंट ।
    सदा पिनक में आलसी, लेता सर्प लपेट ।

    लेता सर्प लपेट, समझता खुद को औघड़ ।
    पी रविकर का रक्त, करे बेमतलब हुल्लड़ ।

    कातिल सनकी मूढ़, पहुँचता बिना बुलाये ।
    दुराचार नित करे, धर्म का भ्रम फैलाए ।"
    --कुटिल, बाबा, आलसी, औघड़" आदि किनके बारे में प्रयुक्त हो रहा है - सब जानते ही हैं ।

    3. @
    आपका शिष्य बनना चाहता हूँ ,
    अब आप ही कुछ धर्म सिखाएं -

    पहली बात तो यह कि , धर्म के अनुसार किसी भी सज्जन के बारे में ऐसे शब्द अपने निजी आक्रोश के चलते कहना सर्वथा अनुचित है ।

    दूसरी बात --- वैसे गुरु बहुत सोच समझ कर चुनना चाहिए - किसी की एक टिप्पणी पढ़ कर उसे गुरु नहीं मानना चाहिए, न ही अपने आप को उसका शिष्य बनाने का सोचना चाहिए । गलत गुरु बड़े गलत रास्ते दिखा सकते हैं ।

    --- मैं आपकी गुरु नहीं बनना चाहती, पर हाँ, यदि सच ही आपको धर्म सीखना हो तो हमारे ग्रन्थ हैं, जो मानव धर्म, व्यक्ति धर्म के बारे में सिखाते हैं । धर्म का "हिन्दू" या "मुस्लमान" से कोई लेना देना नहीं होता - धारयति इति धर्मः ।
    --- फिर भी आपने पूछा है तो आप ही की स्टाइल में कह देती हूँ -
    --
    आप मेरे ब्लॉग पर आयें
    रामायण, गीता पुराणों की कथाएँ ,
    किसी लेबल पर माउस लायें
    और लेफ्ट क्लिक बटन दबाएँ

    पोस्टों की जो सूचियाँ खुल जाएँ
    उन पर ज़रा गौर फरमाएं
    कुरआन में जीवन धर्म खोजने वाले
    कुछ निज ग्रंथों पर भी दृष्टि घुमाएं .....

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  4. और हाँ - यह मैं आपको पहली बार नहीं पढ़ रही । और भी कुछ पढ़ा है आपको ।

    जब जमाल जी ने अपने ब्लॉग पर "नारी" जी का चित्र लगा कर स्त्रियों को अपमानित करते शब्दों के लेबल लगाए थे - और दीपक बाबा जी और रचना जी के आपत्ति करने पर की वे हिन्दू स्त्रियों के चित्र लगा कर ऐसे लेबल दे रहे हैं - उनके साथ हम सब ने आपत्ति की थी ।

    तब भी आपने रचना जी के बारे में, उनके नाम को प्रयुक्त करते हुए, यहाँ कुछ कवितायेँ लिखी थीं - वह भी पढ़ा था मैंने । यह हमारे धर्म का अपमान नहीं था ? हमारे धर्म में स्त्रियों के ऐसे अपमान को गलत नहीं कहा गया है ?

    आप लोग चर्चामंची हैं तो आप लोग किसी के भी बारे में कुछ भी कह सकते हैं ?

    आप चाहें तो मेरी टिप्पणियां डिलीट कर दें - जैसा आप लोगों ने चर्चामंच पर मेरी आखिरी टिप्पणी को किया है । लेकिन इस बारे में सोचें अवश्य । कल ऊपर जा कर हम सभी को उसे मुंह दिखाना है , जिसके सामने टीमें नहीं, अपना व्यक्तित्व ही बोलता है ।

    आभार ।

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    1. dinesh gupta dcgpth@gmail.com
      Nov 22 (8 days ago)

      to Shilpa
      माँ (2)
      नारी-सशक्तिकरण । (3)
      श्री राम की बहन : शांता (24)
      महिला शिक्षा पर करे, जो भी खड़े सवाल -रविकर

      अधिक जरुरी है कहीं, स्वस्थ रहे संतान -

      तेल नहीं घर आज रहा, फिर दीपक डारि जलावस की -

      सास ससुर सुत सुता पति, सेवा में हो शाम

      गोत्रज विवाह-

      भ्रमित कहीं न होय, हमारी प्रिय मृग-नैनी -

      वीर मलाला-

      करते वे तफरीह, ढूँढती माँ को मोटर-

      आँख रही नित मींज, मोतिया-बिन्द पालती-

      भ्रूणध्नी माता-पिता, देते असमय फेंक-

      पाए ना दो कौर, लाज चुपचाप समेटे-

      एकल रहती नार, नहीं प्रतिबन्ध यहाँ है-
      खींचो खुदकी रेख, कहाँ ले खींचे लक्ष्मण
      नारी सशक्तिकरण पर एक गरमागरम बहस -

      shaayad vichaar badalne me sahaayak ho-

      vaise maine na to sanjay ji aur na girijesh ji par koi tippani ki hai-

      maine keval lalit ki betuki tippani par savaal uthaya tha -

      isse kahin pahle maine sanjay ji ke vichaar par apni sahmati di thi-
      jahan tak vishay chunna
      kabhi nakaaraatmak jarur likha hai-
      parntu sakaaraatmak bhi bahut hai-
      saadr aadreya-
      aap pahli bar aai mere blog par
      aabhaar-

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    2. dinesh gupta dcgpth@gmail.com
      Nov 22 (8 days ago)

      to Shilpa

      तन मन को देती जला, रहा निकम्मा तापमहिला शक्ती - करण
      रविकर
      6Comment count
      38View count
      3/16/12

      पाक प्रेम में पिस पगी, पंक्ति एक से एक-महिला शक्ती - करण
      रविकर
      6Comment count
      15View count
      3/10/12

      भ्रूण-हत्या आघात, पाय न पातक पानीमहिला शक्ती - करण
      रविकर
      7Comment count
      16View count
      3/9/12

      अंतड़ी जब अकुलात, भात जूठा भी भाता--


      dinesh gupta dcgpth@gmail.com
      Nov 22 (8 days ago)

      to Shilpa

      गर्भवती हो जाय, ढूँढ़ता कुत्ता अगली-
      लेता पुत्र बचाय, गला बस पुत्री चापा-
      परम पूज्य हैं सुदर्शन, हम अनुयायी एक-
      हरदम हिन्दु हलाक, हजम हमले हठ-धर्मी -
      मदन लाल जी धींगरा, सावरकर का संग-
      दो दो हरिणी हारती, हरियाणा में दांव-
      मित्र सेक्स विपरीत गर, रखो हमेशा ख्याल-रविकर
      एकल पुत्री पाल के, पति पत्नी संतुष्ट। पूरब में परि...

      हरे रंग का है अगर, भागे भगवा मित्र-

      नाले में नवजात को, देते दुर्जन फेंक । सहभागी दुष्क...
      आखिर जलना अटल, बचा क्यूँ रखे लकड़ियाँ -

      नैतिक शिक्षा हुई, आज की जिम्मेदारी -
      प्यास बुझी ना बावली, ले ले बच्ची गोद
      संरक्षित निर्भय रहे, संग पिता-पति पूत
      भ्रूण में मरती हुई वो मारती इक वंश पूरा


      स्लीपर-सेल : घनाक्षरी
      हरते जो अधिकार, पुरुष वे बड़े लटे हैं-
      पाए ना दो कौर, लाज चुपचाप समेटे-

      राह - राह 'रविकर' रमता, मरी - मरी मिलती ममता-
      निकृष्ट जीवन मानिए, जो होते कामांध-
      भ्रूणध्नी माता-पिता, देते असमय फेंक-
      इत खारिज हो याचिका, उत जाता दफ़नाय-रविकर


      पतित-उधारन बहन, बनी जो निर्मल-गंगा

      सन २०२५ के प्रश्न-उत्तर



      dinesh gupta dcgpth@gmail.com
      Nov 22 (8 days ago)

      to Shilpa
      पुरानी रचना / आपने याद किया -रविकर फटी-चर

      yah puri katha sari tippaniyan aap padhe-
      agar aap mujhe galat kahengi
      main rachna ji se kshama maang lunga-
      par puri tippaniyan padh kar faisla karen

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  5. @ puri tippaniyan padh kar faisla karen

    रविकर जी - मुझे पुरानी बातों में दिलचस्पी नहीं है , और न मेरी टिप्पणी उस सन्दर्भ में थी । न मैं इस बारे में कोई बात ही करूंगी , न ये सबपोस्ट्स पढूंगी जो सब आप कह रहे हैं । न मैंने उस वक़्त आपत्ति ही की थी । @@@ मैं कौन हूँ किसी और के बारे में फैसला करने वाली ? हर एक के भीतर परमात्मा है - जो उसके अच्छे बुरे सभी कर्म देखता भी है । फैसला करने वाला उसके अलावा कौन है इस संसार में ?

    शायद आपने ये सब बातें मुझे मेल करने का प्रयास किया हो - (ऊपर फ्रॉम और टू एड्रेस देख कर ऐसा प्रतीत हो रहा है ) तो बता दूं कि मुझे कोई मेल नहीं मिली - क्योंकि मेरे ब्लोग्गर प्रोफाइल में मेरा मेल एड्रेस नहीं है , मैं उसे इस ब्लॉग जगत में सबसे साझा नहीं करना चाहती हूँ । मेरी टिपण्णी में एड्रेस नो रिप्लाई एट ब्लोगर होता है ।
    --------------------------------------------

    मेरी आपत्ति थी आदरणीय गिरिजेश जी और आदरणीय संजय अनेजा जी के (दीपावली 2012 पोस्ट के चलते हुए) अपमान पर - जो आप लोगों ने चर्चामंच पर भी किया, और यहाँ भी ।

    मेरे आपत्ति करने के बाद आपने मेरा नाम प्रयुक्त कर के भी दो कवितायेँ लगाईं यहाँ - यह भी आप भी जानते हैं और मैं भी । उस पर आपके एक पाठक ने टिप्पणि की - "रजत चप्पलिका से वज्र प्रहार" - जिस पर आपने यह नहीं कहा , कि आपका ऐसा "रजत चप्पलिका से वज्र प्रहार" करने का उद्देश्य नहीं था । इससे साफ़ है कि आप वही कर रहे थे जो वे समझ और कह रहे थे ।

    ज्यादा बातें करने में कोई सार नहीं है - यदि आपको लगता है कि आपने अनुचित किया - तो आप उन लोगों से वहीँ क्षमा मांग लें जहां उन दोनों आदरणीय जनों के बारे में अनुचित बातें लिखीं हैं । आदरणीय शास्त्री जी की टिप्पणी के अनुसार आप भी उस ब्लॉग (charchamanch) के मोडरेटर हैं - तो नैतिक जिम्मेदारी आपकी भी है उस सब की , जो वहां हुआ ।

    और यदि आपको लगता है की आपने उचित किया, या आपने ऐसा कुछ किया ही नहीं, तब भी बात आगे बढाने का कोई अर्थ नहीं , न आप मेरी बात मानेंगे, न मैं आपकी । तो बात को विराम देना उचित होगा ।

    हाँ - मेरा नाम लेकर आप कवितायें लिखेंगे, तो मेरा नहीं, अपना ही अपमान करेंगे । मैं किसी का अपमान नहीं करती, किसी को मककार, कुटिल आदि आदि नहीं कहती । न किसी के निरर्थक आक्षेपों से अपमानित महसूस ही करती हूँ । आप न लिखेंगे - तो बेहतर होगा , लिखना चाहेंगे - तो आपका निर्णय ।

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