फुर्सत जीवन में कहाँ, बहते रहे अबाध |
बहने से मिलती रहे, ईश्वर भक्ति अगाध |
ईश्वर भक्ति अगाध, रास्ते ढेर दिखाते ।
उड़कर आऊं पास, छेकते रिश्ते-नाते ।
स्वार्थ सिद्धि का योग, पूर कर रविकर हसरत ।
मेहरबानी-कृपा, मिले ना किंचित फुर्सत ।।
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मरने से ज्यादा कठिन, जीना इस संसार ।
करे पलायन लोक से, होगा न उद्धार ।
होगा न उद्धार, जरा पर-हित तो साधो ।
बनता जाय लबार, गाँठ जिभ्या में बाँधों ।
फैले सत्य प्रकाश, स्वयं पर जय करने से ।
होय लोक-कल्याण, बुराई के मरने से ।
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विद्यार्थी गुणवान है, घालमेल में सिद्ध ।
व्यवहारिक विज्ञान पर, नजर जमी ज्यों गिद्ध ।
नजर जमी ज्यों गिद्ध, चिट्ठियाँ लिखना आता ।
लेन-देन में निपुण, ढंग से है धमकाता ।
साम दाम सह दंड, जानता परम स्वार्थी ।
रहा सीखना भेद, सीख लेगा विद्यार्थी ।।
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चिट्ठी बढ़िया है बनी, भारी भरकम शब्द ।
अब्द गरज बरसन लगे, बे-मौसम नव-अब्द । बे-मौसम नव अब्द, भिगोये अक्षर बाकी । कर फिर से प्रारब्ध, रखो सिम्पल टुक-टाकी । मौलिकता है प्रेम, लगे बाकी सब मिटटी । एकाकार स्वरूप, छोड़कर आ जा चिट्ठी ।। |
देहली सजनी से मिलन, करता कष्ट कपाट ।
लौह-हृदय कब्जे लगे, देते अन्तर पाट । देते अन्तर पाट , दुष्ट गिट्टक इ'स्टापर । खलनायक बन टांग, अड़ा देते नित-वासर । रविकर बड़ी महान, हमारी छोट सिटकिनी । 'सुधि-सुधीर' आभार, मिलाती देहली सजनी ।। |
ReplyDeleteअच्बछा टिपियाया है...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!