धारा वर विज्ञान का, किन्तु बना अभिशाप ।
यांत्रिकता बढती चली, भेद पुण्य को पाप ।
भेद पुण्य को पाप, साफ़ गंगा खो जाती ।
कलुषित नर'दा रोर, नार'की भोग भुगाती ।
कामप्रेत के कर्म, करे नर से नर'दारा ।
चुड़ैल की अघ-देह, बने खारा जलधारा ।
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पावन श्रम-कण लवणता, मीठा-पन सम स्नेह ।
यही दर्द क्वथनांक है, जलती थाली देह । जलती थाली देह , बना करुनामय चटनी ।
धी-घृत से हररोज, चूरमा बेकल-मखनी ।
अरमानों की महक, ठगे-दिल का दे चूरन ।
पति पर गर कुछ खीस, पुत्र कर दे मन पावन ।।
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गई किताबें हैं कहाँ, जाती झटका खाय ।
शादी उसकी क्या हुई, पुस्तक गईं लुटाय ।
पुस्तक गईं लुटाय, पुस्तकें सखी सहेली ।
बचपन से हुलसाय, साथ इनके ही खेली ।
शादी ख़ुशी मनाय, दर्द यह कैसे दाबे ।
वापस दो लौटाय, जहाँ भी गई किताबें ।।
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शब्द निवेदन में यही, यही शब्द सन्देश |
कविता हो जाते अगर, बढ़ता भावावेश |
बढ़ता भावावेश, माध्यम अच्छा पाया ।
बसे दूर परदेश, पिया के पास पठाया ।
सुरभित सुमन सुगंध, संग में कंटक भेदन ।
शब्द भाव बिन व्यर्थ, बाँचिये शब्द निवेदन ।।
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भाव सार्थक गीत के, आवश्यक सन्देश ।
खुद को सीमित मत करो, चिंतामय परिवेश ।
चिंतामय परिवेश, खोल ले मन की खिड़की ।
जो थोड़ा सा शेष, सुनो उसकी यह झिड़की ।
पालो सेवा भाव, साध लो हित जो व्यापक ।
बगिया वृक्ष सहेज, तभी ये भाव सार्थक ।।
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झकास....।
ReplyDeleteबोले तो, एक दम झक्कास...
ReplyDeleteक्या आप Facebook पर अनचाही Photo Tagging से परेशान हैं?
शब्द निवेदन में यही, यही शब्द सन्देश |
ReplyDeleteकविता हो जाते अगर, बढ़ता भावावेश |
बढ़ता भावावेश, माध्यम अच्छा पाया ।
बसे दूर परदेश, पिया के पास पठाया ।
सुरभित सुमन सुगंध, संग में कंटक भेदन ।
शब्द भाव बिन व्यर्थ, बाँचिये शब्द निवेदन ।।
बहुत सुन्दर शब्द प्रयोग -शब्द भाव बिन व्यर्थ ,भावना इनपे भारी ...
ram ram bhai
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सोमवार, 15 अक्तूबर 20
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भ्रष्टों की सरकार भजमन हरी हरी ., भली करें करतार भजमन हरी हरी .http://veerubhai1947.blogspot.com
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